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नन्दिसूत्रम्।
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प्रस्तावना।
वळी ते संघरूपी कमळ गुणरूप केशराथी युक्त के. ते कमळ जिनेश्वर भगवंतनी धर्मदेशनारूप तेज (किरणो)थी खीलेलुछे. तेनी शोभाथी आकृष्ट थयेला श्रमणोपासकरूप भ्रमरोथी व्याप्त छे. वळी संघरूपी कमळमां
हजारो श्रमणसमुदायरूपी पत्रो छे. [५] चन्द्रः- निर्मळ सम्यकत्वरूप विशुद्ध चांदनीथी युक्त नास्तिकवादरूप राहुवडे मूळथी गळी न शकाय तेवो मध्यवर्ती
तप अने संयमरूप लंछनथी शोभतो संघरूपी चन्द्र छे. [६] सूर्य:- जेम सूर्यने प्रज्वलंत किरणो होय छे, तेम आ संघरूपी सूर्यने पण तप-तेजरूपी देदीप्यमान किरणो छे.
वळी ते संघरूपी सूर्य परतीर्थिक ग्रहोनी प्रभानो नाश करनार छे. ज्ञानरूपी उद्योतथी युक्त छे. आवो
उपशमप्रधान संघरूपी सूर्य छे. [७] समुद्रः- विशाल संघरूपी समुद्र, धृतिरूप वेलाथी विंटळायेलो छ. तेमा स्वाध्याय ने योगरूप मगरो छे. वळी ते |
समुद्र क्षोभ न पामे तेवो छे. [८] आठमी अने आखरो सुंदर मेरुपर्वतनी उपमा संघने आपवामां आवी छे.
___'संघरूपी मेरुपर्वत' [A] ते संघरूपो मेरुपर्वतनी सम्यग्दर्शनरूप (वज्रमय) पीठ छे. [B] ते संघरूप मेरुपर्वत मूलगुणरूप सुवर्णनो बनेलो छे. जेमां उत्तरगुणरूपी रत्नो शोभी रह्यां छे.
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