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मुमतिसाधु श्रीदशवै०
विनयोपायाः गा.४३९४४४
उ०३
॥ १७४॥
आयरियं अग्गिमिवाहियग्गी, सुस्सूसमाणो पडिजागरिजा । आलोइयं इंगियमेव नच्चा, जो छंदमाराहय ई स पुज्जो ॥ ४३९ ॥ आयारमट्ठा विणयं पउञ्जे, सुस्सूसमाणो परिगिज्झ वक्कं । जहोवइट्ठ अभिकंखमाणो, गुरुं तु नासाययई स पुज्जो ॥ ४४०॥ रायणिएसु विणयं पउछु, डहरावि य जे परियायजिद्रा । नीयत्तणे वइ सच्चवाई, उवायवं वक्ककरे स पुजो ॥ ४४१ ॥ अन्नायउंछं चरई विसुद्धं, जवणट्ठया समुयाणं च निच्छं । अलद्धयं नो परिदेवइज्जा, लडुं न विकत्थई स पुजो ॥ ४४२ ॥ संथारसेज्जासणभत्तपाणे, अप्पिच्छया अइलाभेऽवि संते। जो एवमप्पाणभितोसइज्जा, संतोसपाहन्नरए स पुजो ॥ ४४३ ॥ सक्का सहेउं आसाइ कंटया, अओमया उच्छहया नरेणं । अणासए जो उ सहिज्ज कंटए, वईमए कण्णसरे स पुज्जो ॥ ४४४ ॥
॥ १७४॥
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