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________________ Jain Education In दृणासमसण्णिवेसेसु सम्मं पयापालणोवनिअलद्धजसे महया जाव आहेवचं पोरेवश्चं जाव विहराहित्तिकट्टु जयजयसद्दं पउंजंति, तर णं से भरहे राया पयणमालासहस्सेहिं पिच्छिज्जमाणे२ वयणमालासहस्सेहिं अभिथुव्वमाणे२ हिअयमालासहस्सेहिं उमंदिज्जमाणे २ मणोरहमालासहस्सेहिं विच्छिप्पमाणे २ कंतिरूवसोहग्गगुणेहिं पिच्छिजमाणे २ अंगुलिमाला सहस्सेहिं दाइज्जमाणे २ दाहिणहत्थे बहूणं णरणारीसहस्साणं अंजलिमाला सहस्साइं परिच्छेमाणे २ भवणपतीसहस्साई समइच्छमाणे २ तंती तलतुडिअगी अवाइअरवेणं मधुरेणं मणहरेणं मंजुमंजुणा घोसेणं अपडिबुज्झमाणे २ जेणेव सए गिहे जेणेव सए भवणवरव डिंसयदुवारे तेणेव उवागच्छइ २त्ता अभिसेक हत्थरयणं ठवेइ २ त्ता अभिसेकाओ हत्थिरयणाओं पञ्च्चोरुहइ २ त्ता सोलस देवसहस्से सकारेइ सम्माणेइ २ त्ता बत्तीसं रायसहस्से सकारेइ सम्माणेइ २त्ता सेणावइरयणं सक्कारेइ सम्माणेइ २त्ता एवं गाहावइरयणं वद्धइरयणं पुरोहियरयणं सकारेइ सम्माणेइ २त्ता तिष्णि सट्टे असए सकारेइ सम्माणेइर ता अट्ठारस सेणिप्पसेणीओ सकारेइ सम्माणेइ २त्ता अण्णेवि बहवे राईसर जाक सत्यचाहप्पभिईओ सकारेइ सम्माणेइ २ त्ता पडिविसज्जेइ, इत्थीरयणेणं बत्तीसाए उडुकल्लाणिआसहस्सेहिं बत्तीसाए जणवयकल्लाfreeहस्सेहिं बत्तीसाए बत्तीसइबद्धेहिं णाडयसहस्सेहिं सद्धिं संपरिवुडे भवणवरवर्डिसगं अईइ जहा कुबेरो व देवराया कैलाससिहरिसिंगभूअंति, तए णं से भरहे राया वित्तणाइणिअगसयण संबंधिपरिअणं पचुवेक्खइ २ त्ता जेणेव मज्जणघरे तेणेव उवागच्छइ २ ता जाव मज्जणघराओ पडिणिक्खमइ २ त्ता जेणेव भोअणमंडवे तेणेव उवागच्छइ २ त्ता भोअणमंडवंसि सुहासणवरगए अट्ठमभत्तं पारेइ २त्ता उपि पासावकरगए फुट्टमाणेहिं मुइंगमत्यएहिं बत्तीसइबद्धेहिं णाडएहिं उचलालिज्जमाणे २ उवणचिज्जमाणे २ उवगिज्जमाणे २ महया जाव भुंजमाणे विहरइ (सूत्रम् ६७ ) For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600087
Book TitleJambudwip Pragnapati Namak Mupangam Part_1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantichandra Gani
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1920
Total Pages768
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_jambudwipapragnapti
File Size16 MB
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