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________________ श्रीजम्बू SaleBOBARA द्वीपशा वक्षस्कारे आपातकिरातसाधनं न्तिचन्द्रीया वृत्तिः ॥२४५॥ चिलाया तेजेक ज्वालच्छति २ ता आवाइपिस्चए एवं बयासी इसणं देवाशुणि! भरहे राका महिद्वीप जाक णो सड एस सका केपछ देवेण वा आक अग्गिप्पओगेण या जाक उपदवित्तए वा पडिसहितप वा दहावि अपं ते अम्हेविं देवाशुपिडा! तुम्भं पिअष्टयाए भरहस्स रण्णो अवसग्गे कप, तं गच्छह गं तुम्भे देवाणुप्पिा ! हाया कपबलिकम्मा कयकोउअमंगलपायच्छित्सा उल्लषजसाङगा ओघूलमणिअच्छा अग्गाई बराइं रयणा गहाय पंजलिउडा पायवडिमा भरहं रागाणं सरणं उबेह, पणि बइअवच्छला खलु उत्तमपुरिसा पत्वि भे भरहस्स रण्वो अंलिआओ भथमितिकट्ठ, एवं बदित्ता जामेव दिसि पाउब्धूआ तामेव विसि पडिगया । सए से आषाडविलाया मेहमुहेहिं णागकुमारेहिं देवेहि एवं कुत्ता समाणा उड्डाए उठेति २ ता पहाया कयकलिकाग्मा केक्कोउअमंगलपायच्छित्ता उपडसाडगा ओचूलगणिअच्छा अगाई बराई रयणाई गहाय जेणेव भरहे रामा तेणेव उवागच्छति २ सा कस्यलपरिग्गहिरं जाव मस्थए अंजलिं कह भरहं रायं जएणं विजएवं बद्धाविति २ ता अग्गाई वराई रवणाई उवणेति ता एवं वयासी-"नसुहर गुणहर जयहर, हिरिसिरिधीकित्तिधारकरिंन् । लक्खणसहस्सधारक सत्यमिदं मे चिरं धारे ॥ १॥ यवइ गयवइ गरवइ णवणिहिवइ भरहवासपढमवई । बत्तीसजणवयसहस्सराय सामी चिरं जीव ॥२॥ पठमणरीसर ईसर हिअईसर महिसिआसहस्साणं । देवसयसाहसीसर चोद्दसरयणीसर जसंसी ॥३॥ सागरगिरिमेरागं उत्तरवाईणममिजिअं तुमए । ता अन्हे देवाणुपिअस्स वितए परिवसामो॥४॥ अहो मं देवाधुप्पिजाणं इड्डी जुई जसे बले वीर पुरिसकारपरकमे दिव्या देवजुई दिवे देवाणुभाके लखे पत्ते अमिसमण्णाए, तं विद्या देवाणुप्पिआणं इद्धी ब वेव जाये अमिसमण्णागए, खामेनुगदेवाणुप्पिा! खमंतु देवाणुप्पिना! खलुमराहतुदेवापुप्पिबाणाई मुजो रखकरक्याए ॥२४५|| For Private Personel Use Only O Jan Education in A al NI w.jainelibrary.org
SR No.600087
Book TitleJambudwip Pragnapati Namak Mupangam Part_1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantichandra Gani
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1920
Total Pages768
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_jambudwipapragnapti
File Size16 MB
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