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________________ श्रीजम्बू द्वीपशान्तिचन्द्रीया वृत्तिः ॥१६॥ रवक्षस्कारे चतुर्थपञ्च1 मषष्ठारकाः सू.३४-३५ -३६ तेसिं मणुआणं छविहे संघयणे छबिहे संठाणे बहूई धणूई उद्धं उच्चत्तेणं जहण्णेणं अंतोबहुत्तं उक्कोसेणं पुवकोडीआउअं पालेंति २ त्ता अप्पेगइआ णिरयगामी जाव देवगामी अप्पेगइया सिझंति बुझंति जाव सबदुक्खाणमंतं करेंति, तीसे णं समाए तओ वंसा समुप्पजित्था, तंजहा-अरहंतवंसे चक्कवट्टिवंसे दसारवसे, तीसे णं समाए तेवीस तिमयरा इकारस चक्कवट्टी णव बलदेवा णव वासुदेवा समुप्पज्जित्था । (सूत्रं ३४) तीसे णं समाए एक्काए सागरोवमकोडाकोडीए बायालीसाए वाससहस्सेहिं ऊणिआए' काले वीइकते अणंतेहिं वण्णपज्जवेहिं तहेव जाव परिहाणीए परिहायमाणे २ एत्थ णं दूसमाणामं समा काले पडिवजिस्सइ समणाउसो!, तीसे ण भंते! समाए भरहस्स वासस्स केरिसए आगारभावपडोआरे भविस्सइ !, गोअमा ! बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे भविस्सइ से जहाणामए आलिंगपुक्खरेइ वा मुइंगपुक्खरेइ वा जाव णाणामणिपंचवण्णेहिं कत्तिमेहिं चेव अकत्तिमेहिं चेव, तीसे णं भंते! समाए भरहस्स वासस्स मणुआणं केरिसए आयारभावपडोयारे पण्णत्ते !, गो० ! तेसिं मणुआणं छविहे संघयणे छविहे संठाणे बहुइओ रयणीओ उद्धं उच्चत्तेणं जपणेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं साइरेगं वाससयं आरअं पालेंति २ ता अप्पेगइआ णिरयगामी जाव सबदुक्खाणमंतं करेंति, तीसे णं समाए पच्छिमे तिभागे गणधम्मे पासंडधम्मे रायधम्मे जायतेए धम्मचरणे अ वोच्छिजिस्सइ । (सूत्रं३५) तीसे णं समाए एकवीसाए वाससहस्सेहिं काले विइक्वते अणंतेहिं वण्णपज्जवेहिं गंधरस०फासपज्जवेहिं जाव परिहायमाणे २ एत्थ णं दूसमदूसमाणामं समाकाले पडिवजिस्सइ समणाउसो!, तीसे णं भंते ! समाए उत्तमकट्ठपत्ताए भरहस्स वासस्स केरिसए आयारभावपडोआरे भविस्सइ !, गोअमा ! काले भविस्सई हाहाभूए भंभाभूए कोलाहलभूए समाणुभावेण य खरफरुसधूलिमइला दुबिसहा वाउला भयंकरा य वाया संवट्टगा य वाइंति, इह अभिक्खणं २ धूमाहिति अ दिसा समंता ॥१६॥ JainEducationtional For Private Personel Use Only EA w .jainelibrary.org R
SR No.600087
Book TitleJambudwip Pragnapati Namak Mupangam Part_1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantichandra Gani
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1920
Total Pages768
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_jambudwipapragnapti
File Size16 MB
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