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________________ C OACCESSOCCARRC एतेषां चाविरतादीनां त्रयाणामपीदं लक्षणंअलाणाणप्नुवगमजयणाहज अवजविरईए । एगवयाश् चरिमो अणुममित्तो त्ति देसजई॥२०॥ अणुमशविर यजई दोण्ह वि करणाणि दोण्हि न न तश्यं । पछा गुणसेढी सिं तावश्या आलिगा उप्पिं ए अमाणेत्यादि-तत्र यो व्रतानि न जानाति, न चान्युपगति, न तत्पालनाय यतते, सोऽझानानन्युपगमायतनान्निरविरतः। अत्र च त्रिनिः पदैरष्टौ लगाः तत्रायेषु सप्तसु नङ्गेसु नियमादविरतोऽयतो व्रतानि घुणादरन्यायेन पालि १नो जाणइ नो आदरइ नो पालइ जिणधम्मु । तिपएहिं अभंगा, सेसा दिद्वन्तया नेया ॥१॥ सम्मं न याण (सम्मत्त जाणे ) तैवलिंगधारया अगियत्थ सेणियाईया। पंचुत्तरसुर संविग्गपक्खिणो अहमेसु जई ॥२॥ पढमा मिच्छद्दिडी चउरो संसारभमणद्देउ त्ति । इयरा सम्मदिट्टी, अरिहा निव्वाणगमणस्स । ३॥ स्थापना चेयम्१ न जाणई, न आदरई ५ जाणई, न आदरई न पालई, सर्वलोक न पालें, श्रेणिकादिक २ न जाणई, न आदरई ६ जाणई, न आदरई पालई, तपस्वी पालई, अनुत्तरदेव ३ न जाणई, आदरई ७ जाणई, आदरई न पालई पार्श्वस्थ, न पालई, संविग्नपाक्षिक ४ न जाणई, आदरई ८ जाणे, आदरें, पालई, अगीतार्थ पालई, महाव्रतधारी Jain Educatio n al For Privale & Personal use only M elibrary.org
SR No.600076
Book TitleKarmprakruti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMalaygiri
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1913
Total Pages462
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size23 MB
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