________________ श्रीमती प्रोपनियुक्तिः // 12 // संपादकीय II महान उपयोगी थाय तेवी धारणा छ / पत्र 471 थी 514 सुधी आ परिशिष्ट छ / परिशिष्ट 4 मां विशेषनामसूची पत्र अने पंक्तिवार नोंधी छे / / प्रारंभमां अवचरीनो उपक्रम पूज्यपाद् शासनसेवापरायण सुगृहीतनामधेय आराध्यपाद पू. उपाध्याय भगवंत श्री धर्मसागरजी महाराजना परमविनेय शास्त्रऐदम्पर्यविज्ञाता भूगोल खगोल अंगे विज्ञानवादनी परिशोधने आमूलचूल भूल भरेली साबित करवा अनेक कुलपतिओ वाईस चान्सेलर प्राध्यापका प्रोफेसरोनी परिसंवाद-गोष्ठिना पुरस्कर्ता महामनीपी अध्यात्मसाधनमग्न पूज्य पन्यासप्रवर श्रीअभयसागरजी महाराजश्रीए लखी आपी महान उपकार कर्यो छ / साथे साथे आ ग्रंथनी महत्ता अने आदरणीयता बतावी छ / त्यारबाद सिंक्षिप्त विषयानुक्रम आप्यो छ / परमपूज्य गुरुदेव आगमोद्धारकश्रीनी उपसंपदाप्राप्त शिल्पशास्त्रविशारद कडकपणे सचोट मार्गदर्शक परमपूज्य पंन्यासप्रवर श्रीकंचनसागरजी गणिवर महाराजश्री के जेओए आ कार्यमां आदिथी अंत सुधी अनेकविध मार्गदर्शन तेमज मारा प्रमादने दूर करवा मदद करी छे तेओने केम भूलु। वळी जेओए आ संपादनमा अनेकविध मौलिक सहायता करी छे ते पूज्य पंन्यासप्रवरश्री अभयसोगरजी म. के जेओ लघुवयमां (6 वर्ष 3 मोसमां) दीक्षित थया ते शासनना महान प्रभावकानी काटीमा छ / तेमने पण अनृण थवा संभारु तो तेमां कशु अजुगतुं नथी / // 12 // JainEducationin For Privale & Personal use only www.jainelibrary.org