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विचित्ते चित्तपत्तए । ओहिंजलिया जलकारी, य नीया तंबगाइ या ॥ १५२१ ॥ इइ चउरिंदिया एए, णेगहा एवमा- पञ्चेन्द्रियाणां यओ।लोगस्स एगदेसंमि, ते सव्वे परिकित्तिया ॥ १५२२ ॥ संतई पप्पऽणाईया०॥ १५२३ ॥ छच्चेव य मासाऊ, *चतुर्विधत्वम् उकोसेण वियाहिया । चउरिदिय आउठिई, अंतोमुहुत्तं जहन्नयं ॥ १५२४ ॥ संखिजकालमुक्कोसं, अंतो। चउरिदियकायठिई, तं॥१५२५ ॥ अणंतकामुक्कोसं, अंतो० ॥ १५२६ ॥ एएसिं वन्नओ चेव०, ॥ १५२७ ॥
चतुरिदिए इत्यादि सूत्रदशकं, इदमपि प्राग्वत् नवरं, चतुरिन्द्रियाभिलाप एव विशेषः, एतद्भेदाश्च केचिदतिप्रसिद्धा | Xएव, अन्ये तु तत्तद्देशप्रसिद्धितो विशिष्टसम्प्रदायाच्चाभिधेयाः, तथा षडेव मासानुत्कृष्टा चतुरिन्द्रियाणामायुःस्थितिः॥ १४५-५४ ॥ १५१८-२७॥
पञ्चेन्द्रियवक्तव्यतामाहपंचिंदिया उ जे जीवा, चउव्विहा ते वियाहिया । नेरइय तिरिक्खा य, मणुया देवा य आहिया ॥ १५२८ ॥ ___ पञ्चेन्द्रियास्तु पुनर्ये जीवाश्चतुर्विधास्ते व्याख्याताः, तद्यथा-नैरयिकास्तिर्यञ्चश्च, मनुजा देवाश्च आख्याताः-कथिताः तीर्थकृद्भिरिति शेषः ॥ १५५ ॥ १५२८ ॥
तत्र तावन्नैरयिकानाह
नेरइया सत्तविहा, पुढवीसू सत्तसू भवे । रयणाभसकराभा, वालुयाभा य आहिया ॥ १५२९ ॥ पंकाभा धूमाभा, तमा तमतमा तहा । इइ नेरइया एए, सत्तहा परिकित्तिया ॥१५३० ॥ लोगस्स एगदेसंमि, ते सव्वे उ |
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