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________________ जीवाजी अवचूर्णिः ॥३१७॥ षट्रिशस्त मध्ययन सब्वे, न सवयव बोद्धव्वा इंदगाइ य ॥ १९११॥ १०॥ कप्पासिऽद्विमिंजायमान त्रीन्द्रियवक्तव्यतामाह तेइंदिया य जे जीवा, दुविहा ते पकित्तिया। पजतमपजत्ता, तेसिं भेए सुणेह मे ॥ १५०९ ॥ कुंभुपिवीलिउइंसा, उक्कलुद्देहिया तहा। तणहारा कहहारा य, मालूगा पत्तहारगा ॥ १५१०॥ कप्पासिद्विमिंजा य, तिंदुगा तउसमिंजगा । सदावरी य गुम्मी य, बोद्धव्वा इंदगाइ य ॥ १५११ ॥ इंदगोवसमाइया, णेगहा एवमायओ। लोएगदेसे ते सव्वे, न सम्वत्थ वियाहिया ॥ १५१२॥ संतई पप्पणाईया०॥१५१३ ॥ एगूणवन्न होरत्ता, उक्कोसेण वियाहिया । तेइंदिय आउठिई, अंतोमुहुत्तं जहन्नयं ॥१५१४॥ संखिजकालमुक्कोसा । तेइंदियकायठिई० ॥ १५१५ ॥ अणंतकालमुक्कोसं० । तेइंदियजीवाणं० ॥१५१६ ॥ एएसिं वन्नओ चेव० ॥ १५१७॥ तेंदिए इत्यादि सूत्रनवकं प्राग्वत् , नवरं, त्रीन्द्रियोच्चारणं विशेषः, तथा कुन्थवः-अनुद्धरिप्रभृतयः, पिपीलिकाःकीटिकाः, गुंमी शतपदी, एवमन्येऽपि यथासम्प्रदायं वाच्याः, एकोनपश्चाशदहोरात्रान् त्रीन्द्रियाणामायुःस्थितिरुत्कृष्टेनउत्कृष्टतः॥ १३६-४४॥ १५०९-१७ ॥ चतुरिन्द्रियवक्तव्यतामाह चरिंदिया उ जे जीवा, दुविहा ते पकित्तिया । पजत्तमपजत्ता, तेसिं भेए सुणेह मे ॥ १५१८ ॥ अंधिया | पुत्तिया चेव, मच्छिया मसगा तहा। भमरे कीडपयंगे य, ढिंकणे कुंकणे तहा ॥१५१९॥ कुक्कडे सिंगिरिडी य, नंदावते य विच्छिए । डोले भिगिरिडिओ, विरिली अच्छिवेहए ॥१५२० ॥ अच्छिरे माहले अच्छि [रोडए], त्रीन्द्रियच रिन्द्रियस्वरूपम् ॥३१७ Jain Education i VOBhal For Privale & Personal use only djainelibrary.org
SR No.600070
Book TitleUttaradhyayanani Uttararddha
Original Sutra AuthorChirantanacharya
AuthorKanchansagarsuri
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1889
Total Pages480
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationManuscript & agam_uttaradhyayan
File Size22 MB
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