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उत्तराध्य. विवागे ॥ ३३ ॥ रूवे विरत्तो मणुओ विसोगो, एएण दुक्खोहपरंपरेण । न लिप्पई भवमझेऽवि संतो, जले
प्रमादस्थाबृहद्वृत्तिः
दण वा पुवखरिणीपलासं ॥ ३४ ॥ सोयरस सदं गहणं वयंति, तं रागहेउं तु मणुन्नमाहु । तं दोसहेउं अमणुनमाहु, समो अ जो तेसु स वीयरागो ॥ ३५ ॥ सदस्स सोयं गहणं वयंति, तं रागहेडं तु मणुन्नमाहु ।
ना० ३२ ॥६२९॥ तं दोसहेउं अमणुन्नमाहु, समो अ जो तेसु स वीयरागो ॥ ३६॥ सद्देसु जो गेहिमुवेइ तिव्वं, अकालियं
|पावइ सो विणासं। रागाउरे हरिणमिउव्व मुद्धे, सद्दे अतित्ते समुवेइ मच्चु ॥ ३७॥ जे यावि दोसं समुवेइ तिव्वं, तंसि क्खणे से उ उवेइ दुक्खं । दुइंतदोसेण सएण जंतू, न किंचि सदं अवरज्झई से ॥ ३८॥ एग-18 तरत्ते रुइरंसि सद्दे० ॥ ३९॥ सदाणुगासाणु०॥ ४० ॥ सद्दाणुवाएण परिग्गहेण०॥४१॥ सद्दे अतित्ते०४२ तण्हाभिभूयस्स०॥ ४३ ॥ मोसस्स पच्छा य॥४४॥ सदाणु०॥४५॥ एमेव सदंमि० ॥४६॥ सद्दे विरत्तो० ॥४७॥ घाणस्स गंधं गहणं वयंति॥४८॥ गंधस्स घाणं ॥४९॥ गंधेसु जो गेहिं० रागाउरे ओसहिगंधगिद्धे, सप्पे बिलाओ विव निक्खमंते ॥५०॥ जे यावि दोसं० ॥५१॥ एगंतरत्तो रुइरंमि गंधे० ॥५२॥ गंधाणु०॥५३॥ गन्धाणुवा० ॥५४॥ गंधे अतित्ते ॥५५॥ तण्हा ॥५६॥ मोसस्स० ॥५७॥ गंधाणु ॥ ५८॥ एमेव गंधमि०॥ ६९॥ गंधे विरत्तो०॥६०॥ जिब्भाए रसं गहणं० ॥११॥ रसस्स जीहं गहणं
॥६२९॥ वयंति०॥३२॥ रसेसु जो गेहि. रागाउरे बडिसविभिन्नकाए, मच्छे जहा आमिसभोगगिद्धे ॥६३॥ गाथा १३॥७३॥ कायस्स फासं गहणं वयंति०१॥ फासस्स कायं गहणं० २॥ फासेसु जो गेहिमुकारागाउरे सीयज
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