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________________ परिशिष्ट आवश्यक नियुक्तेरवचूर्णिः। आ आगम पर १८५०० श्लोक प्रमाण चूणि छे; तेना का निसीह उपर चूणि रचनार श्री जिनदासगणि होवानु केटलाक विद्वान कहे छे. जैनशासनना महास्तंभरूप श्री हरिभद्रसूरिजीए आ आवश्यक पर ८४००० श्लोक प्रमाण महाकाय टीका रची हती; ते हजो अप्राप्य छे. परंतु सद्भाग्ये एमणे २२००० श्लोक प्रमाण जे 'शिष्यहिता' टीका रची हती ते मळे छे अने ते प्रकाशित पण छे. | विविध उपांगोना वृत्तिकार श्री मलयगिरिमूरिजीए पण आ आगम पर टीका रची छे; परंतु ते अपूर्ण मळे छे; तेम छतां तेनो १८००० श्लोक प्रमाण उपलब्ध भाग मुद्रित थयो छे ते आनंदजनक छे. __आ उपगंत वोनी पण केट लीक वृत्तिओ छे ए वधीनुं प्रमाण १,००,००० (एक लाख) श्लोक प्रमाण गणाय छे, ते उपरांत आवश्यकना कोइ कोइ विभागने अनुलक्षीने पण बहोळा प्रमाणमां वृत्ति आदि साहित्य योजायुं छे. पू० आ० तिलकाचार्ये 'श्राद्ध प्रतिक्रमण मूत्र वृत्ति' श्लोक ३०४० रची; ते उपरांत 'साधु प्रतिक्रमण मूत्र वृत्ति' पण | तेमणे रची छे.. श्राद्ध सामायिक प्रतिक्रमण मूत्र व्याख्या प्रकरण' कर्ताः श्री विजयदेवसूरि प्राकृत गाथा २९३ श्लोक ३६५ | सं. ११८३, ॥९॥ Jain Education in For Private & Personel Use Only W w .jainelibrary.org
SR No.600065
Book TitleAvashyaksutra Niryuktirev Curni Part_2
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri, Gyansagarsuri, Bhadrabahuswami
Author
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1965
Total Pages338
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationManuscript & agam_aavashyak
File Size15 MB
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