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________________ आवश्यक- निर्युक्तेरव चूर्णिः । ॥ १३७॥ त्रिंशन्मो हनीयस्थानानि । Songs तद्विषयं, तथा चाङ्गादिदर्शनतस्तद्विदो भावि सुखादि जानन्त्येव, त्रिविधं पुनरेकैकं दिव्यादि ॥ १ ॥ सूत्रं वृत्तिस्तथा वार्तिकं चेत्यनेन भेदेन-'दिवाईण सरूवं अंगविवजाण होइ सत्तण्हं । सुत्तं सहस्स लक्खो अवित्ती तह कोडि वक्खाणं ॥१॥ अंगस्स सयसहस्सं सुत्तं वित्ती अकोडि विनेआ । वक्खाणं अपरिमिअं एमेव य वत्तियं जाण ॥२॥' एकोनत्रिंशद्विधं, अष्टौ मूलमेदार, सूत्रादिभेदेन त्रिगुणिताश्चतुर्विंशतिः, तथा गान्धर्व १ नाट्यं २ वास्तुविद्या ३ आयुर्वेदः ४ धनुर्वेदश्च ५॥२॥ वारिमज्झेवगाहित्ता तसे पाणे विहिंसई । छाएउ मुहं हत्थेणं अंतोनायं गलेरैवं ॥ १॥ सीसावेढेण वेद्वित्ता संकिलेसेण मारण् । सीसमि जे य आइंतुं दुहमारेण हिंसह ॥ २॥ बहुजणस्स नेयारं दीवं ताणं च पाणिणं । साहारणे गिलाणंमि पहू किच्चं न कुवइ ॥३॥ साहू अकम्भ धम्माउ जे भंसेइ उवैट्टिए । णेयाउयस्स मग्गस्स अवगारंमि वट्टई ॥ ४ ॥ जिणाणं णतणाणीणं अवणं जो उ भासह । आयरियउवज्झाए खिसई मंदबुद्धीए ॥ ५ ॥ तेसिमेव य णाणीणं समं नो पडितप्पह । पुणो पुणो अहिगरणं उप्पाए तित्थमेयए । ॥ ६ ॥ जाणं आइंमिए जोए पउंजइ पुणो पुणो। कामे वमित्ता पत्थेद इहऽनभविए इथे ॥ ७॥ भिक्खूर्ण बहुसुएऽइंति जो भासइऽबहुस्सुंए । तहा य अतवस्सी उ जो तवस्सित्तिऽहं वैए ॥ ८॥ जायतेएण बहुजणं अंतोधूमेण हिंसँइ । अकिच्चमप्पणा काउं कयमेएण भासइ ॥ ९ ॥ नियडवहिपणिहीए पलिउंचे साइजोगजुत्ते य । बेइ सवं मुसं वैयसि अक्खीणझंझए सयौं ॥१०॥ अद्धाणंमि पवेसित्ता जो धणं हर पाणिणं । वीसभित्ता उवाएणं दारे तस्सेव लुब्भैइ ॥ ११॥ अभिक्खमकुमारेहिं कुमारेऽहंति भास: । एवं अभयारीवि बंभयारित्तिऽहं वैए ॥ १२ ॥ जेणेविस्सरियं णीए वित्ते तस्सेव लुमई । तप्पभावुट्ठिए वावि अंतरायं करेइ“ से ॥१३॥ सेणावई पसत्थारं भत्तारं वावि हिंसई । रहस्स वावि निगमस्स नायगं सेविमेव वा ॥ १४ ॥ अपस्समाणो पस्सामि अहं देवेत्ति वा १३७॥ For Private Personal Use Only १ Jain Education ww.jainelibrary.org
SR No.600065
Book TitleAvashyaksutra Niryuktirev Curni Part_2
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri, Gyansagarsuri, Bhadrabahuswami
Author
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1965
Total Pages338
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationManuscript & agam_aavashyak
File Size15 MB
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