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चूर्णिः
श्रावकप्रतिमा:।
॥१२२॥
बावश्यक-I
दसणवयसामाइय पोसहपडिमा अवंभ सचिते । आरंभपेसउद्दिढ वज्जए समणभूए य ॥ १॥ नियुक्तेरव-ला
दर्शनप्रतिमा, एवं व्रतसामायिकपौषधप्रतिमा अब्रह्मसचित्तआरम्भप्रेष्य उद्दिष्टवर्जकः, श्रमणभूतश्च, तत्र प्रतिमायाँ चतुष्पा रात्री कायोत्सर्गः कार्यः, प्राक्तनप्रतिमाविधिश्व, अब्रह्मवर्जकप्रतिमायां मैथुनं त्याज्यं, आद्यायां मासो यावदेकादश्यामेकादशमासाः ॥१॥ अर्थतत्स्वरूपं व्यक्त्याह-'सम्मदंसणसंकाइसल्लपामुक्कसंजुओ जो उ । सेसगुणविष्पमुको एसा खलु होति पडिमा उ॥१॥ विइया पुण वयधारी सामाइयकडो य तहयया होइ । होइ चउत्थी चउद्दसि अट्ठमिमाईसु दियहेसु ॥२॥ पोसह चउविहंपी पडिपुण्णं सम्म जो अणुपाले । पंचमि पोसहकाले पडिमं कुणएगराईयं ॥ ३॥ असिणाणवियडमोई पगासमोइत्ति जं भणिय होइ । दिवसओ न रत्ति मुंजे मउलिकडो कच्छ णवि रोहे ॥४॥ दिय बंभयारि राई परिमाणकडे अपोसहीएसुं । पोसहिए रतिमि य नियमेणं बंभयारी य ॥ ५॥ इय जाव पंच मासा विहरह हु पंचमा भबे पडिमा । छट्ठीए बंभयारी ता विहरे जाव छम्मासा ।। ६ ॥ सचम सत्त उ मासे णवि आहारे सचित्तमाहारं । जं जं हेडिल्लाणं तं तो परिमाण सर्वपि ॥ ७ ॥ आरंभसयंकरणं अट्ठमिया अट्ठमास बजेइ । नवमा णव मासे पुण पेसारंभे विवजेइ ॥ ८ ॥ दसमा पुण दस मासे उद्दिढकयंपि मत्त नवि भुंजे । सो होई छुरमुंडो छिहलिं वा धारए जाहिं ॥ ९ ॥ जं निहियमत्थजायं पुच्छंति नियाण नवरि सो आह । जइ जाणे तो साहे अह नवि तो ति नहि जाणे ॥१०॥ खुरमुंडो लोओ वा रयहरणपडिग्गहं च गेण्हित्ता । समणभूओ विहरे णवरि सण्णायगा उवरिं ॥ ११॥ ममिकारअवोच्छिन्ने बच्चा सण्णायपल्लि दह जे । तत्थवि साहुब जहा गिण्हइ फासुं तु आहारं ॥ १२ ॥ एसा एक्कारसमा इक्कारसमासियासु एगासु । पण्णवणतहअसदहाणभावाउ
॥ १२२॥
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