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आवश्यक
निर्युरव
चूर्णिः ।
॥ १ ॥
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'चैत्यवंदन महाभाष्य ' कर्त्ताः श्री शान्तिसूरि गाथा ९२२ आ अने ते परनी वृत्ति ए बने पाटण भंडारमां छे, मनुं महाभाष्य मुद्रित छे.
— चैत्यवंदनभाष्य वृत्ति ' अपरनाम ' संघाचार वृत्ति' कर्त्ताः आ. धर्मघोषसूरि ( श्री देवेन्द्रमूरि शिष्य - पट्टधर ) गाथा ८५०० श्लोक ९७५०. वे भागमां छपायुं छे.
'चैत्यवंदनावचूर्णि कर्त्ताः सोमसुंदरसूरि श्लोक १०२७ मुद्रित थयेल छे.
'चैत्यवंदनावचूर्णि ' कर्त्ताः XXXXX श्लोक ४२५ पूना भंडारमां छे.
'चैत्यवंदन भाग्य ( लघु ) ' कर्त्ताः श्री पार्श्व चंद्रसूरि श्लोक १०८ पूना भां. ओरि. ई. मां छे.
'चैत्यवंदन चूर्णि ' कर्त्ताः श्री सौभाग्य
पाटण भंडारमां छे.
'चैत्यवंदन विवरण ' कर्त्ताः श्री रत्नप्रभसूरि श्लोक ८४० जेसलमेरमां छे.
'चैत्यवंदन 'साधुवंदन ' श्री प्रतिक्रमणमूत्र वृत्ति कर्त्ताः श्री पार्श्व चंद्रसूरि श्लोक २००० पाटण भंडारमां छे. आ वृत्ति प्राचीन छे.
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'चैत्यवंदन चूर्णि ' कर्त्ताः श्री यशोदेवसूरि श्लोक ८४० सं. १७७४, पाटण ज्ञानभंडारमां छे. 'चैत्यवंदनसूत्र वृत्ति' कर्त्ताः श्री तिलकाचार्य, पाटणमां छे.
'चैत्यवंदन मूत्रवृत्ति 'कर्त्ताः खर० श्री. तरुणप्रभसूरि श्लोक ७००० सं. १३३१ तेनुं बीजुं नाम ' बालबोधा ' पण छे.
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परिशिष्ट
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