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________________ वन्दन आवश्यकनियुक्तरव चूर्णिः । दोषाः ॥४९॥ ॥५॥ अप्पपरपत्तिएणं मणप्पओसो य वेड्यापणगं । तं पण जाणवरि जाणुहिवाओ जाणुबाहिं वा ॥ ६ ॥ कुणइ करे जाणुं वा एगयरं ठवह करजुयलमज्झे । उच्छंगे करइ करे मयं तु निज्जूहणाईयं ॥७॥ मयह व भयइस्सइत्ति य इअ वंदइ ण्होरयं निवेसंतो । एमेव य मित्तीए गारवसिक्खावणीओऽहं ॥ ८॥ नाणाइतिगं मोत्तुं कारणमिहलोयसाहयं होई । पूया. गारवहेऊं नाणग्गहणेवि एमेव ॥ ९॥ हाउं परस्स दिद्धि वंदंते तेणियं हवइ एयं । तेणो विव अप्पाणं गृहह ओभावणा मा मे ॥ १० ॥ आहारस्स उ काले नीहारस्सावि होइ पडिणीयं । रोसेण धमधमंतो जं वंदह रुद्रुमेयं तु ॥११॥ नवि कुप्पसि न पसीयसि कट्ठसिवो चेव तज्जियं एयं । सीसंगुलिमाईहिं य तज्जेइ गुरुं पणिवयंतो ॥ १२ ॥ वीसंभट्ठाणमिणं सम्भावजढे सहं भवह एयं । कवडंति कइयवति य सढयावि य हुंति एगट्ठा ॥१३॥ गणिवायगजिटुञ्जत्ति हीलिउं किं तुमे पणमिऊण । दरवंदियंमिवि कह करेह पलिउंचियं एयं ॥ १४ ॥ अंतरिओ तमसे वा न वंदई वंदई उ दीसंतो। एवं दिवमदिg लिंग पुण मुद्धपासेहिं ॥ १५ ॥ करमिव मन्नइ दितो वंदणयं आरहंतिय करोत्ति । लोइयकराउ मुक्का न मुच्चिमो बंदणकरस्स ॥ १६ ॥ आलिद्धमणालिद्धं रयहरणसिरेहिं होइ चउभंगो । वयणकरेहिं ऊणं जहन्नकालेवि से सेहिं ।। १७॥ दाऊण वंदणं मत्थएण वंदामि चूलिया एसा । मृयत्व, सद्दरहिओ जं बंदह मूयगं तं तु ॥ १८ ॥ ढड्डरसरेण जो पुण सुत्तं घोसेइ ढड्डरं तमिह । चूहलिं व गिहिऊणं रयहरणं होइ चूडलिं तु॥ १९॥"अपितो 'त्ति यद्वन्दनं ददानोऽनियन्त्रित: स्यात् , झप इव मत्स्यवत् , 'मयइ ' मजति भजिष्यतीति वा, 'होरयं ' मौल्यमावं चिन्तयन् , 'पच्छपणइस्स 'त्ति पश्चाद्याचिष्ये ।। ११२५ ।। किइकम्मपि करितोन होइ किइकम्मनिजराभागी। बत्तीसामन्नयरं साहू ठाणं विराहिंतो॥ १२२६ ॥ Jain Education Inter For Private & Personel Use Only Tww.jainelibrary.org
SR No.600065
Book TitleAvashyaksutra Niryuktirev Curni Part_2
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri, Gyansagarsuri, Bhadrabahuswami
Author
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1965
Total Pages338
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationManuscript & agam_aavashyak
File Size15 MB
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