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________________ उववन्न अहो वणियस्स जज, ते मित्त सुन्नि कम्मिहिंश्रणनिहणम्मि गए नाहम्मिते य, कलहं कुषंति घरधणकए य॥६॥ कुषित्तु पुढवी य पत्त, आजीविय बहु पावप्पसत्त । अहमिय नवंतर नूरिजेय, निवइस्स जाय नंदण वे य ॥७॥ पियमरणिहिं रजिथश्व बुध,अन्तुन्न करिय समरं विमुछ। उप्पन्न तर्ज पुण तमतमाइ, पंचत्त सहिय दुहसंगमाइ॥११॥ धालुछ मुन्धमोहियमणेहिं, बहुवेयण पाविय तब तेहिंीन हुकस्सइ दिनखपिच,धण अक्रिय श्रप्या कुहिय किसाशा अन्नाणक काऊण सुख, सो सागरजीव हू गरिछ। तुममवणिनाह श्यरो य तुज्ज, उववन्न जाय लहु सयलबज्ज ॥७३॥ श्त्तोय अवर जं तस्सरूव, विनायपुब सो तुज्फ सब। उसग्ग करिस्सइ तुह अएज, चरणम्मि ठियस्स महाअवजा ॥७॥ सो कूरयाइसह करिय मित्ति, तस थावर जीव वहे विसत्ति। दुस्सहदरासि विसन्न बाल, नमिहीनवनूरिश्रणंतकाल॥७॥ श्य सुणिय वयण सुगुरुहिं वुत्त, वेरग्गरंग नियमा पवत्त।निय जायणिज हरिकुमरिरजा, संकामिय निव गिरह पवा॥७६॥ उस्सहतवसोसियनियसरीर, मेरु व सुधिर अश्धीरवीर । सुमुणियसिझंतरहस्सतत्त, उखुयविहार रिसिराय पत्त ॥ १७ ॥ कस्स वि पुरस्स बाहिरपएसि, गिय काउसम्गि बह गुरुनिदेसि । श्रच जा जपलंबबाह, समरेण दिता गुणसणाह॥७॥ समरिय नियमणि वेराणुबंध, खग्गेण विखंमिय तेण बंध। सुहकाणगयस्स जश्स्स तस्स, करुणा कह चित्तिहिं तारिसस्स ॥ए। अस्सहवेयण सहिय तेण, नूममखि तरकणि निवमिएण। चिंत रे जीव परव(ब)सेण, तई दिदुच्छह कंपिरेण 1000 नरतिरियमरयजवि जमिर जीव,किं किंन सहस्सह हथईवाचनाणवसंगय अविर य,कम्ममुहरिउमारिने य॥१॥ मा धीर विसाय करेसुधित्ति,वायरसुखमागुण अतणु ऊत्ति। उत्तरिय जवहिनणुगोपयम्मि, को बुडपंमिय सुहतरम्मि 43 विसन्न बाल, नमिहान वयस महाअवजा KARAMS | कस्स वि पुरमथानियसरीर, मेरु व सुशिमा पवत्त।निय नायणि Jain Education International For Private & Personal use only www.jainelibrary.org
SR No.600046
Book TitleUpdeshsaptatika
Original Sutra AuthorKshemrajmuni
Author
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages506
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size11 MB
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