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उपदेश
॥ २१ ॥
तद करहसगमपुयिह सब, बणमो लोहमचरिहि घन । देसंतरि पेसइ बहुय सछ, न गणइ ते पावद जर अपत्य ॥ ५५ ॥ धाक राहिगार लिंति, करवुड हिय दाखिहिं करति । बंधंति हेरुहयतणीय गेहि, श्रहनिसि ते मुत्रिय अप्पदेहि ५६ इच्वाइपावकोमीहि तेहिं, धएको कि समय कइ दिदिं । श्रह पश्चिय जलनिहिमज्जि तेहि पूरिय पवहण बहुवरकरेहिं ॥ ५७ ॥ लग्गेवि कन्नि जंपिय कुरंगि, तो कुरयाइ मनि धरिय रंगि । नणु हसु मित्तमिममप्पणिक, धनागहरं जइ सोरिक का ॥ ५८ ॥ जसुधा तसु सयोग हुंति, श्रणडुंतवि घणबंधव मिजंति । धणवंतह आवास विबलंति, लीलाइ मणोरहस्य फलं ति || || नियह विहिं कुण नणु दक्षिणजाय, तबयण हूय तणुमण सहाय । निच्चं पि कहिय पावोवएस, कस चित्तिहिं न वसई जए श्रवस्स * तो पाकिय सायर सायरम्मि, तो ते जलुम्मी पूरियम्मि । सो खदेह जलगरसएहिं, संपत्त नरय असुहोहिं ॥ ६१ ॥ मयकिच्च ते निम्मिय असेस, मणि हर सिय तब सम्मि एस। जा जाइ किंपि जलमग्गि जाव, फुट्ट वाद तरकणि सपाव ६२ नीरंतरि बुड्डुल सयललोय, इय खं खं खमज्जि पोय । गय सयलवच्चवरकर जल म्मि, जीवियसंसय सो परिय तम्मि ॥ ६३ ॥ अह तुरियदिवसि पट्टिय लहेवि, उत्तिन्न सो य कहिहिं करे वि। संपत्तन कम्मिवि पट्टम्मि, वाणिज करइ सो पुए वि तम्मि ६४ धायि लुंजिसु विजलजोय, चिंतित्तु एपिरि सप्पमोय । वणगहण जमिर अह जमर जेम, सो जरिकय सी दिए एम तेम ६५ मरिण पत्त धूमप्पचाइ, जिहिं पुरकलरक अस्संखयाइ । जव जमिय तर्ज अंजण गिरम्मि, केसरिकिसोर द्वय कंदर म्मि॥६६॥ कठाक दो वि हु निमंति, नरयम्मि चटवर मरिय जंति । उबट्टिय उग्गनुयंग हूयं, निहिकडाई कुनई सुप्पनूय ॥ ६७ ॥ घात ॥ पाविय पंचतण रोरुवसग्गिए कज्छंता पत्ता नरय । धूमप्पहनामिहिं पुस्कर गमिहिं तत्तो जब जमक बहुय ॥ ६८ ॥
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सप्ततिका.
॥ २१ ॥
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