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अहह किं जायमेयं महाणत्ययं, एम पुकर तिहिं सयखजएसत्ययं ॥११॥ कहमिमेणबाणोण मारिसाए, मिखह सबे-वि खहु जेण वारिजाए। । कहमिमस्सेरिसी कुम संपन्नया, तह पखोयंतु नयणेहि जणसंचया ॥१॥ एम जंपंतखोएण खग्गप्पहाराज बारिट सूवई सबहा । वहार रोसरित्तो महीवासवो, धरिय बाहाश्तं रश्यनयरूसवो ॥१३॥ किं तए नाय किकाइ श्रणायारया, दिस्सए किं न संसारनिस्सारया। तुज्क जइ कामेएण रजाणा, ता तुमं गिएह श्रसमित्य खरकम्मुणा ॥२४॥ जेण खशिखाए इत्य जणमज्जए, तं कुलीयेहिं कश्या विन करिजाए। जंपिए एवमवि तस्स नो चवसमो, पनवुझासमावन्न पावहुमो ॥१५॥ इत्यजुयसम्मि विलोमिऊएं गर्म, जह य उस्कणिय श्रापाखखंनं गर्छ ।
बुज्जई कह य धम्मोवएसाश्य, जस्स मणमन्कि पावंधयारुच्चयं ॥२६॥ ॥जास ॥ उच्चरिय वियाणिय चित्तिहिं श्राणिय पावखाणि जायत।
___ संवेगिहिं रंजिय कम्मि अगंजिय, अथिर मुण धण श्रप्पप ॥२५॥ सुयणो विहुमुलाप हवश्खोइ, घणकारणि मित्त अमित्त हो।निहिणा पजात्तमिमेण मज्ज, वीमंसिय श्य गय नयरमक॥२॥3
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