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________________ उपदेश सप्ततिका. जलपूरिहिं खिजाइ हा नरिंद, पुक्करश्तत्य श्य खोयविंद। धावह धावह नो सुहम इत्य, कल नरवाजगिसो समस्य॥१॥ जिहिं दीसश्दीहतमाखसाल, निबंबवुतम्बर विसाल।बह दीहतमालामवीयरुरिक,तरणी विलग्ग कह कह विरुरिक॥१३॥ उत्तरिय नूमिवासव जवेण, संजुत्तन कश्वश्परियरेण । वीसमइश्कखण तिहिं नरेस, नियनयणिहिं पिवश्वणपएस ॥१३॥ हासमभरम अगमवग्घ, हरिहरिणजूह उन्चल सिग्य । जमरुव तमिर तिहिं नमिनाह, आण उबेय महा अगाह॥१५॥ मणिरुप्पकण्यटंकय अपार, तारय जिम जिगमिग करईतार। कूलंकससखिलुकणिय ताव,निहि पिस्कश्यणुजालसहाव॥१६॥ ४ तंतिरिकय नियमंदिरिहिं पत्त, निवकित्तिचंच परिवारजुत्त । श्रह चिंत सरखसहाव राय, वंचिजश्व सरिनेव जाय॥१७॥ ॥घात ॥दसत नरवर नियय सहोयर समरविजय.आणे वि बहु । अश्कुमिखसहाविण चिंतइ तस्कण सो पाविज्ञ सुदुइ बहु ॥ १०॥ ॥जास ॥रयणखोहेण निहणेमि नणु जायर, जीववहाखियघणपावजरकाररं। रकमवि सेमि गयतुरयसयसजिय, गुरुधनुयदंमसारेण जे अक्रिय ॥ १५॥ कस्स माया पिया जाय जत्तिकया, कस्स मित्ता य जयणीय वरपुत्तया। जस्स घण तस्स घण सयणसंबंधिखो, पिम्ममावह सबो वि नणु परियणो॥१०॥ मुक निस्संकचित्तेण बहुजाणा, पाय नियनायहणणत्यमुरुमाश्या। १ मतिमायाविना. 38 Jain Education inte For Private & Personal use only www.jainelibrary.org
SR No.600046
Book TitleUpdeshsaptatika
Original Sutra AuthorKshemrajmuni
Author
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages506
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size11 MB
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