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HASAN
च पुनः मित्रेण सुहृदा तुल्यं समानं गणयेत् मन्येत हुई पुष्टमपि अत्यन्तापकारिणमपि परमोपकारिणमिव गणयेथाः।। न हि उष्टेष्वनिष्टं कुर्याः । येन साम्यावस्थासम्बनेन हे जीव तव जब मोक्षावाप्तिलक्षणं स्यादिति तात्पर्यार्थः॥
अत्रार्थे कीर्तिचन्धसमद्रविजयजात्रोः सन्धिबन्धेन कथा प्रतन्यतेइह नरहखित्ति अब पसिझ,चंपाश्य नयरीधणसमिधा जिहिं धम्मककि जणु अहियबुझ,परदबहरणि पंगुष सुझ॥१॥ सुपयंमदंक जिणहरसिरेसु,न हु दीस पुण नायरनरेसु। जिहिं तिबलोह सुहमह करेसु, अश्मलिणपंक गिम्हह सरेसुशा तत्यत्थि नराहिव कित्तिचंद, जसु जसिहि विणिङिय जमश्चंद।न दुपावश्कत्थ विजाव गण, ताजमरुश् सेवश्सुन्नगण ॥३॥ जुवराय समरविजयानिहाण, खहु तास सहोयर दोसगण । परिपास दोन्निविनिययरज, मणवंत्रिय साहश्सयलकजा ॥४॥ जिणि नग्गनग्गसूरप्पयाव, विणिवारियसबरिनप्पलाव । जबकंततिविङ्गुलिकराल, करवाल करंतन करि विसाख ॥५॥ गजियरवि तजाकिर पुरंत मुक्कालमहारिनवखमहंत । गयणग्गनवणि निम्मियनिवास, पूरंत तियणखोयास ॥६॥ कसिपब्नपलउब्जमगयंद, अह पाउसकालमहानरिंद । सालूरमोरगणवंदिविंद, जयजयरवपत्तअमंदनंद ॥७॥ इत्यंतरि कोऊहलरसाल, श्रारूढ गवरिकहिं नूमिपाल । उन्नविरबहुलकल्लोलमाल, पिस्कर नश्पूर महाविसाल ॥॥ उत्तरिय नूमिवसह रंत, तिहिं आगय नियपरिवारजुत्त । श्रारुहिय नाविपविसइखणेण, नश्वरमज्फि कोलगरसेण ॥णा जलकेलि कर जा परियणेण, सह जूवश्ता जवरिं घणेण । वुण पवकिल नश्पवाह, अतिववेगि पवहश् श्रगाह ॥१०॥ उम्मग्गि जति श्रह बेमियाज,जह उक्का नरवश्चेमियाउ । न हु कन्नधार वावार कोश, विप्फुरखोइ हलबोख हो ॥११॥
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___JainaryINE
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