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उपदेश
पनि
1॥२०॥
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श्रह समरविजय नश्तमि जमत, नहु पिस्कारयणुच्चय महंत । पुर विदु संठिय कूरकम्म, कह पाव कठविसुक रम्मशए गिरिहत्तु ग नणु मिनाह, श्य नियमणि धरिय सुदुरकदाह । पुरनयरगाम चोरी करत, सो वट्ट परधणकण हरंत ॥३०॥ नियन्जायदेस खुट्टा निसंक, जण बंधश्रुधासन वंक । अह अन्नदिवसि निग्गदिय सोय, सामंतिहिं तक्कर जिम ससोय॥३॥ निवनग्गश्राणिय तेहिं एस, सामिय इणि लुटिय सयस देस । जरुच्चश्त कीरज श्मस्स,श्य जंपिय तेहिं नरवरस्स ॥३शा नरव मिहहावश्जीवमाए, अप्पावइ बहुधणरयणदाण । सो निवर अश्सश्रुचित्त, नरव पुणि हिय दयापवित्त ॥३३॥ तसु वुत्त खेसु मह रयणरजा, अंतेनरपुरहिं न मज्क कहा। सोजाणइं नरवइ दिन्न केम, खिजा हीलिजाइ थप्प एम ॥३॥ उदाखिय जुयवलि जो गहेमि, कयकिच्च सच्च अप्प गणेमि । सो बहु परिचुक्क रायदेहि, मुक्कल तहा वि बंधवह नेहि ३५ जण तच जण एरिस उवन्न, सिरिकित्तिचंदनरराय धन्न । जिणि पालिय सजाणगुण अपार, बहु जायद किय जीवोवयार ३६
किहिं बियर किहिं सायर गजीर, किहिं कायर किहिं पुण धीर वीर।
किहिं गयवर किहिं गद्दहल सोय, श्य अंतर तिहिं वागर खोय ॥ ३७॥ सुयत्नजारामुला अतुल, वजंतन सुरसरिसलिलसन्छ । संवेगरंग अंगीकरेइ, उविग्गचित्त निव घरि वसे ॥ ३० ॥ बह सुगुरु तल चननाणजुत्त, पणसमिश्तीनिगुत्तीहिं गुत्तापायरिय पबोहसुनामधिना, पुरि समवसरिय चारित्तसज॥३ हरसियमण तसु श्रागमणि राय, जाएविणु जत्तिहिं नम पाय । सुगुरूवएस कन्निहिं धरेश, वय बारसेव अंगीकरे॥१०॥ श्रह पुत्र नियबंधवचरित्त, कहमेस सामि बहुदोसजुत्तोनक्षवश्गुरू विहु मदुरवाणि, पुहवीसर निसुणश्ककाणि ॥४॥
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