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________________ CASKAA%%%% %2-6-4-56-OCTOC44- श्रह नंदण जासइ जपणी जणयह मण उदास । सामि कहल तुम्हि किंहि जाएसहु वीरपासि श्रावहु श्राएसहु ॥१६॥ |गोयमगणहर वणिहिं पहुँत्तल मणहरकुमरिहिं सो संजुत्तल । रूवतिरवि जिम.दिपंतत उग्गपरीसहरित जिप्पंतज ॥२७॥ सामिय कुमर पिरिक समुवागय पुत्र व सन्बम सागय । देसणश्रमियरसिहिं सिंचेई जवइदाहसु परिवंदाचेई॥२०॥ इहु श्रसारसंसार गणिकाइ धम्मसार नरजम्मि सुणिजाइ । देउलसिरि जिम धयवमअंचल धपजुषणपरि यण सट्ट चंचख ॥ श्ए॥ जररस्कसि श्राव धावंती बस सयणजण इत्थ न जंती। तमु जो अप्प न ररकश मुरको अंतकाखि सो होइ विखरको ॥ ३० ॥ श्राहिवाहि जा तणु न विवाह सोगसंग जा अंग न गाह। इंदियसत्तिहाणि नहु गल जाव पिंमबल पयमन अछ॥ ३१ ॥ ताव धम्म अायरिहिं करिजाइ जीवियजम्मतएउ फल लिजाइ । सवएंजलि जिवाणी पिटाइ जरामरण 5ह रिं गमिडाइ ॥ ३॥ दीपहीजण करुणा किला पाणीय जाणी नेव इणिका। अखिय श्रदत्त श्रबंन निवारत अप्पण पळ संसारह तारज ॥ ३३ ॥ घात-इच्चाइ सुविण तत्त मुणेविण चित्तिहिं रंजिय कुमरवरो। संपत्तल नियघरि बुझइ अवसरि आवीय जपणीजणयपुरो ॥ ३४ ॥ जास-घणवु वण |जिम उनसीयउ मह मणु अज धम्मि नणु वसीयत । वघ्माण जिणवर वस्काणीय धम्मवत्त मई निच्चल जाणीय ॥३॥ धम्म इक परमत्य मुणिजार अवर सहू शकयत्य गणिजाय। जल चिंतामणि करियलि कखीयन तन किं काच कर जगि रुखीयन ॥ ३६॥ सामिय पासि गहिसु इथं दिस्का बहु परिपामिसु निच्चख सिस्का । घरि घरि गोयरचरिय जमेसो ? चंचसचित्तपयंग दमेसो॥३७॥ तो पियरिहिं पुलियत कुमारो, एवमत किम मुणिय वियारो। महर वयणि अश्मु 442 4 - 0 * AMRA%न For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.600046
Book TitleUpdeshsaptatika
Original Sutra AuthorKshemrajmuni
Author
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages506
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size11 MB
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