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उपदेश
सप्ततिका.
॥३२४॥
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त्तन बुझइ पिच सणेहबुधिहि नहु मुबइ ॥ ३० ॥ जं मई जाणिय तं नवि जाणिय जं जाणिय तं पुष न वियाशिय परिस असमंजस तन्नासिय निसुणिय माइपियर उल्लासिय ॥३ए। वह कहं एरिस तथं जपइ तो अश्मुत्तन बोलत प। एय वत्त परमत्य महंतन तुम्हि बुनल मई पयमिङतउ ॥४०॥ जन जायज तल निवर मरई पुनपावसत्यिहि अणुसरई । तं न मुणिकाइ जं पुण किणिखणि जीव मरेस्सइ पुरि बाहिरि वणि ॥५१॥ नवि बुनलं कुणसलं जिल
गव नरयमनि तिहिं सुरिकय श्रवजाणलं पुण सो वेढिय कम्मिहिं जाइ सही संकिम अधम्मिहिं ॥४॥ घाततातो अरक राया मिलिय माया जाया संजलि तलं खडु य । कह चरण चरेसी कह करेसी खुद्द पिवास मुह अश्बदुय । H॥४३॥ जास-तुह पलमपत्तसुकुमालदेह लायन्नपुन्न नणु सुरक गेह । खग्गधारतिरका पुण दिस्का कह मग्गिसि घरि
घरि पुरि जिरका ॥४॥ पंचमहत्वयमेरु धरेवा नुयबलि निय सिरितोयकरवा । उसह परीसह अंगि सहेवा पुरस्कसुरक न गार कहेवा ॥४५॥ सत्तुमित्त तणतुल गणेवा विषयगुणिहिं सुत्तत्थ जणेवा । मुक्कर किरिय करिसु त केम व
सुरक अणुहवि सुर जेम ॥ ४६॥ जुत्तजोग चारित्त धरे जे रहि घरि नंदण रज करे जे । कहर कुमार किं पिन उहे-15 साला धीर नरह सर्व पि सुहेखन ॥४७॥ धर गिरि नुयबलि उप्पामा मेरुसिहरि अप्पण पलं वाम। गयणमग्गि
चरणहबलि चहार सेसनाग नियकतिहि घसा ॥४०॥तियण जण नयणह विण कहर जं असत तं कजा पसाह श्य अश्मुत्त चव(य) पिन अग्गा मुक्करदिरक सिरक सो मग्ग॥४ए॥ उत्तावत्तणबाल न किसाइकित्तिय काख विलंब वहिजा । श्य जाजपणि जपयतं बुखई पुत्तविरह जाणी मनि मुखई ॥५०॥ ताव कुमार कहर जो निसुणह जीविय.
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SAACAMACRORAKAR
॥२४॥
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