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________________ उपदेश- ॥२३॥ harstrekkXXXX चत्तारि न किजा मणि कसाय पच्चरकरूव नणु ते पिसाय । वसि किलाइ ते नियतक्रमण खमदमउवसमवसिनिबएणसप्ततिका. र॥१३॥च्चाइ सुदेसाण रससुसाउ परिपीय सबजण गयविसाउ । जिणगुण थुपंतु नियगेहपत्त पहलत्तिकरवियसुद्धचित्त ॥१४॥ अह व सुषु तवपारणम्मि श्रापुत्रिय पहु निरकाखणम्मि । पोलासपुरिहिं गोयममुणिंद श्राव मुहचंगिमविजियचंद ॥ १५॥ श्रह रायमग्गि अश्मुत्तनाम पुरकुमर समन्निय मणजिराम । खिवंतन श्रब कंपुगेण नाणाविहकीलारसरेण ॥ १६॥ नहु थक्कर हक्क पुरकुमार रे धावदु खावहु कांश्वार । श्य जंपिरेण हरिसेण तेण दिन गोयमरिसि | तस्कषण ॥ १७॥ पयपमि लग्ग सो मुणिवरस्स बहुपुन्नजोगि समुवागयरस । को रायहंस गई सिरकवेश को उबुदंग मरिम ग्वे॥१०॥ कुलवंत होइ नणु विषयवंत विणसिस्किय अरिकय सो महंत । अंगुलीयलग्ग अश्मुत्त वत्त श्य करइ हर मुणिवरह चित्त ॥ १५॥ तुम्हे पडु निवसहु कत्य गमि पुरनयरदेसि श्रारामिगामि । पुरमनिलमदु कुण कारणेण तो अस्किय गोयममुणिवरेण ॥२०॥घात-लो निकाकारणि उच्दपारणि हवं नमामि पुरि कुमरवर । सिरिवीरहपासिहिं नणु वणवासिहि वासमति श्रद पवर ॥१॥जास-श्य गुरुवयण सुणेवि कुमारो सिरिधश्मुत्त कह जगसारो । सामीय मन्नघरिहि पधारउ सुकयवति वणराइ वधारज ॥२॥ श्रावंतच नियनंदण निरखीय सुगुरुसत्थि जएपी मणि हरखिय । पुन्नवंत अप्पणपत्रं मन्ना कुमरतणा गुण वयणिहिं वन्न ॥२३॥ तस्कणि संमुद श्रा- R॥१३॥ विय अंबा गुरुदंसणि पुलश्य विखंबा । पयजोहारिय मोयग अप्पश्थप्पण पुन्नवंतधुरि थप्पश्॥॥ चित्तवित्तसुखीय मुणेविण पमिगाइ मुखिपत्तधरे विष । तो अश्मुत्तकुमर मणि तुच्छ मन मणोरह फखियगरिच्छ ॥२५॥ महुरवाणि ५५6 डलरबर माहिं वन्नर ॥ २३॥३४॥ चित्तवित्तवाणि Jain Education FOE Private & Personal use only Dilww.jainelibrary.org
SR No.600046
Book TitleUpdeshsaptatika
Original Sutra AuthorKshemrajmuni
Author
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages506
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size11 MB
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