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________________ करेण सो पीमा अश्कूरतणेण ॥४५॥ नहु तिरकपुरक खोयह गणेश विन्नत्ती कन्निहिं नदु सुणे। निसुषंतु वि श्रसु४ एंतो व होइ अश्यररोस समुबहे ॥४६॥श्रारंज दंचमहापवंच गिएह नियह स्थिहिं उन्न खंच । लोयह संताव वार वार नहु ऽस्थिय सत्यह कुणा सार ॥४७॥ तक तह तामझ निहुरेहिं दढलेछुमुहिकसमुग्गरेहिं । किविगुत्तिहिं *बंध संकलेहिं उच्चंध रंधर अग्गलेहिं ॥४०॥ न कयावि दयापरया श्मस्स खोयाणमुवरि कयनिग्गहस्स । श्रश्खु-I यशनिबंधसस्स नहु धम्म वसइ खलु चित्ति तस्स ॥ ए॥ नहु लजाइ सजश् पावकम्म अजर अकला पयमेश् मम्म । इच्चाई माई गम काख एयारिस चिर कुविनब काल ॥ ५० ॥ उप्पन्न अकयपुन्नस्स तस्स जवि तम्मि रोग सोखस अवस्स । जरखाससास तह कुचिसूल अश्स्स ह पुस्कर कन्नमूल ॥ ५१ ॥ तह अरिस नगंदर दिपुिठि सूलुप्तव तणुता परिसमियकुछ। तणुदाह जलोदर सोसपोस इच्चाइ सुस्सह कम्मदोस ॥ ५५॥ अणुहवा हवा अश्हीपदीण श्रामयवसि नमीयन पुरकरीण । तो रसिय अगयंकारयाण तप्परियरि बहुगुणकारयाण ॥ ५३॥ तेहि वि परिचत्तल सो श्रधन्न जिम हंसिहि निरनीरसुन्न । तो अट्टरुद्द काणिहिं मरितु पढमम्मि नरइ इक्काइ पत्त ॥ ५४॥ तिहिं सहिय उस्क उमरिय सो य मियविजयरायचंगय सोय । संपत्त नपुंसयदेहगेह मुस्काण अमंगल पढमरेह ॥ ५५॥ सिरिवी-1 रनाहि जह गोयमस्स मियपुत्तचरिय पन्जणिय असस्स । तह जंबू श्रग्गर सुहमसामि अरकाय विवागसुयंगठामि ॥५६॥ वह मइ निइंसिय खेसमित्त जं इत्य जाय मह पय असुत्त । मिलमुक्कम तं सबे खमंतु सितमगि मुणि अनिरमंतु 379 CARDAMAK4 Jain Education International For Private & Personal use only www.jainelibrary.org
SR No.600046
Book TitleUpdeshsaptatika
Original Sutra AuthorKshemrajmuni
Author
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages506
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size11 MB
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