________________
चपदेश
1| 20 ||
Jain Education International
जा श्राविय हरसि ॥ ३२ ॥ नियमुहबंधवि सत्तत्रमंचलि तो मियदेवि जण करि अंजलि | तुम्ह वि मुहपत्तीय मुह सप्ततिका. ढंक श्रागतचितिमासंकहु ॥ ३३ ॥ तो जीमहर बारुग्यामइ तरकणि पुरहिगंध मुह सामइ । सप्पममय गोममय सरित जो पसरत होइ नदृ पि ॥ ३४ ॥ अन्नगंध उझरस लहेविण सलवलेइ अवसर जाणे विए । दीसइ अंगआहारिहिं पीएड नयण वयणनासा परिहीएन || ३५ ॥ परिकत्तपत्तमम्मि सोय तडुवरिहि तु परिकविय तोय । सो लुलर चलइ श्राहारसन्न लुइड रसगिक प्रकयपुन्न || ३६ || घत्तसो तत्थ खुलंतन कम्मिरसंतन लोमाहार करेइ लड्डु । पुएरवि नीहारिय रोगिहि जारिय पूतणि देहान बहु ॥ ३७ ॥ जास- एरिस पेरकेविण तस्सरूव गोयम गएनायग विस्सरूव । वेरग्ग अभंगुर धरइ चित्ति चिंतय अचिंतिय कम्मसत्ति ॥ ३८ ॥ मियदेवि श्रणुन्ना लदिवि देव सिरिगोयम चलीय अह तदेव । संपत्तल पहुपयजुय नमेइ करकमल जोकि इय विन्नवेश ॥ ३५ ॥ तुम्हाण श्राण पहु सिरि धरित्तु हवं विजयरायजवणम्मि पत्त । जह कहिय तुम्हि तद् चेव दिन मंई लोहरूव नंदण श्रणि ॥ ४० ॥ आइसह नाइ मह तच्चरित्त एयारिस सो दुध किंनिमित्त । कम्माणि तेा कह दिया इतिरकाणि य जिणि सजियाई ॥ ४१ ॥ इय पुयि सत्थमणेण तेण पहु बकरे महुरस्सरेण । इत्थेव श्रत्थि पुर सयşवार तिहि राय श्रासि धाबड़ उदार ॥ ४२ ॥ तस्सेद् विजयवचणऽनिहाण वरखेकय धन्नधणोदवाण । जसु केरुइ पंचसयाई गाम नाणा विहघएवमनिराम ॥ ४३ ॥ इक्काईतिहिं रघउ श्रसि जसु घुम्मइ चित्तिहिं वसइ वासि । जो पारुइ सयलोयपासि बहुकूम करेवि निग्धणमहासि ॥ ४४ ॥ चिंता हिगार गामाण तस्स अप्पिय निवे निग्धणमणस्स । गामीण लोय दुस्सह
378
For Private & Personal Use Only
॥ १०९ ॥
w.jainelibrary.org