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संपत्ते तारुले हरितु परिवायगेण सिरकषिर्छ । विकास रोहिणीए स पञ्चवारं हर्ड तीए ॥ ॥म्मि जवे उम्मासाऊ सो रोहणि स सिनंतिं । नेइ नवि सत्तमए तं साहेचं समाढत्तो॥ ए॥चियगाइ सबं खिवित्रं तं पनाखिनु तो तऽवरिं च । पत्थरिय अक्षचम्म वामगुण जखणबहिं ॥१०॥ तम्मेवं कुणमाणे काखयसंदीवगो समेच्च तया । परिकवर इंधहाई सत्तदिणेहिं गएहिं त॥११॥ सयमेच्च देवयाऽऽह प्पसन्नयाऽहं करेहि मा विग्छ । सिझा एयस्स धुवं कत्थंगे संविसामि जण ॥१२॥ तेण णिलाम दंसियमेथाविध विखं श्रनू तत्थ । नेत्तं कयमीईए तुजए तो तिनेत्तरको ॥१३॥ धस्सिय श्रणेण समणी तत्तो तेणं हर्ड य पेढालो । तत्तो रुद्दनिहाणो पसिघन जुवणमनम्मि ॥ १४॥ श्रह मारणिकताणं मुणिलं सो कालदीवगो नहो । नसाहो तमणुग विनवियं तेण तिपुरमहो॥ १५॥ तद्द तेण खणा पायाखे न वि सो हणि । वह विवाचकवट्टी संजा सच्चई नुवणे ॥ १६॥ वंदित्तु तित्थनाहे तिसंक्रमेसो पकुबई नहें। रमइ तई सकेणं महेसरको त्ति नाम कयं ॥१७॥ धिजाजाश्रोसावेसा ताण कन्नकार्ड सो। विस जूवार्य रमपीठ रमा सिलाए ॥ १७॥ सीसजुयमस्स जायं नंदी नंदीसरो य सुपसिई । पुष्फगविमाणमेसो थारुहि चरइ सवत्य ॥ १५॥ अह उणिपुरीए सचंपकोयरायरमणी। अंतेउरम्मि धंस सो सिवदेविं विणा सबा ॥२०॥ तो पडोट। चिंता को खयरो कहं खु इंतवो । श्चंतेतरीट सबा एएण विबिया अहहा ॥१॥ तत्वेवासी वेसा उमा य नामेण रूवगुणरम्मा । तीए उत्तं श्रयं वसीकरिस्सामि तं सामि ॥२२॥ तो जूवश्णाऽऽदिघा सा तं दखूण नन्नसि आयंतं । अश्सुरहि अगरघुवं करेण तस्सम्मुई कुण ॥१३॥ सो अन्नया नहाङ उत्तिको तीए चंदसाखाए । तकरगयांबुयह
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THE व सो हशिर्छ । अह विळाच
॥ धिजाजाशोसावेसात वावमाणमेसो बारुहिलं चरई सबाली
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