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________________ उपदेश- सप्ततिका. | REC%ACES सयं न । जत्थेरिसा कुमारा तीए खयकारगो अहयं ॥ १४ ॥ रिसिवयणं निसुणिय ससजसा खयरं कुमारा ते । सबै वि तकरा इव वारवइपुरं खहु पविच ॥१५॥ तं मुणिय वासुदेदो चिंतइ इंतया कुमाराणं । धिनीयमउम्मा अदीददंसित्तमएहिं ॥ २६॥ श्रह गंतूण पसन्नो कत्तुं जुत्तो तवस्सिलं एसो । पसरंतो रोसजरो उद्धारो वणदबुब सिया ॥ २७ ॥ तो बलजद्दसमे समेच्च कएहो मं मुणिं जण । तुम्हे महाणुजावा अवराई खमह अम्हाणं ॥२०॥ बहुएहिं वि नपिएहिं मणयं पि न एस संतिमावन्नो । तो बखजद्देणुत्तं किं कहा हवश् तं होउ ॥ श्ए॥जह तेहिं मक पाएं न कयं होजा त कहं इंतो। जाव नयरीए ख तम्हा मऊ विवजन्तु ॥३०॥ ॥इति मद्यपानोपरि दृष्टान्तः ॥ अथ विषयविषये सत्यकिदृष्टान्तः प्ररूप्यतेखाश्यसम्मत्तधरो परतित्युचप्पणाविणासपरो । जं सच्चइ जमइ नवं विसयासेवा तहिं हेऊ ॥१॥ परिवायगपेढाखो विजासियो अश्व सुपसियो। विज दाङ वंश स बंजयारिणि सुयम्मि नियं ॥२॥ चेमयनिवस्स पुत्ती सुळे चरम-8 जिएसमीवम्मि । सा पमिवनिय दिकं विहरती तेण श्रह दिन ॥३॥ तजोणीए विरियं खिवेइ धूमं वियविळ सहसा। संजूए गले श्रह विनायं साहुणीहिं इमं ॥४॥ तो परमत्थे कहिए पन्चन्नं गविया सुसमृगिहे। तत्थ य सुयं पसूया कमेण संवए बालो॥५॥ सहा साहुणीहिं पत्तो स श्रन्नया वीरनाइनमणत्वं । पुनश् य काखसंदीवगो य मह मरणमीस कळ ॥६॥अस्कर पढू श्मा सञ्चसिसुणो गमित्तु तप्यासे । जासइ रे तुममसि मा घायगोश्य इस पाए ॥७॥ 294 ॥१७॥ Jain Education International For Private & Personal use only www.jainelibrary.org
SR No.600046
Book TitleUpdeshsaptatika
Original Sutra AuthorKshemrajmuni
Author
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages506
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size11 MB
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