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________________ उपदेश ॥ १४४॥ Jain Education Inte इसी परि सो गमेइ । रयहरण नइ मुहपत्तीय खेइ, मुणिवेस सी सलुंचिय करे ॥ ६२ ॥ इकारस मासा इय करेइ, पमिमा इकारस अणुसरे । निसि सेसि धम्मजागरि करे, नियचित्तिहिं इपिरिचितवे ॥ ६३ ॥ पपईदिय तिबलूसासाय, दस पा सहिय जा सकाय । सिरिवीरनाद जां विजयवंत, सण हवं गिरिहसु ता पसंत ॥ ६४ ॥ इ सत्तखित्ति धण वावरे, गुरुमुहि दंसणवय उच्चरे । चत्तारि सरण चित्तिहिं करे, मंगल चत्तारि समुच्चरेश् ॥ ६५ ॥ पाणाश्वाय जं किय निसंक, नासा सच्चासिय जु वंक । श्रदिश लिद्ध जं घण पार, मेहुए जं सेविय मई उदार ॥ ६६ ॥ जं किछ परिग्गह मई असार, जं कोद माए माया विकार । जं खोज पिम्म कलहो य दोस, पेसुन्न अरइ र बहुकिलेस ॥ ६७ ॥ परवाय परह जं अलखाण, श्य किs श्रढारस पावठाण । विगहा जं विहिय चटप्पयार, बावीस कह किय आहार ॥ ६८ ॥ जं श्रट्ट रुद किय निकाए, श्रासेविय पनरस कम्मदाए । हिंसिय चचरासी खरक जीव, ते मिलाकम जावजीव || ६ || जिणराय पूय किय तित्थजत्त, जं पोसह सामाइय पवित्त । जं जत्तिर्हि दिन्न मुखिहि दाण, जं सीलिय सील दयानिहाए ॥ ७० ॥ जं बारजेय तव किय पसिद्ध, जं जावण जाविय विसुद्ध । जं पालिय वयसम्मत्तसार, जं गुरुज सेविय बहुपया ॥ ७१ ॥ घात - इच्चाइ जु कि तिजय पसिद्ध धम्म विसुद्ध जिएकदिय । ते सवि णुमाय चित्त पमोयइ कसमल धोय पुबकिय ॥ १२ ॥ संलेहण किसी मास पुन्नि, तिथि अप्पा पूरिय पत्रखपुन्नि । अएसए परिपालिय एगमास, धणसयण पुत्त परियण निरास ॥ ७३ ॥ परमिडिमंतसुकाएखीण, पअंतकालि नडु ही दीए । सो वीस वरिस विय सावगत्त, सौहम्म नाम सुरजवणि पत्त ॥ ७४ ॥ सोहम्मवरुंसयवर विमाण, ईसानकूषि जसु अ 288 For Private & Personal Use Only सक्षतिका. ॥ १४४ w.jainelibrary.org
SR No.600046
Book TitleUpdeshsaptatika
Original Sutra AuthorKshemrajmuni
Author
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages506
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size11 MB
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