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उप्पन्न एरिस संकमम्मि, अश्रवनयसयसंकुखम्मि ॥४ए॥णिपरि गुणवन्नण करीय तस्स, सिरिकामदेव सावयवरस्स । संपत्त देव सुरलोयगण, वासव अग्गर किय तसु वखाण ॥ ५० ॥ श्रह. गिन्देश नद्दारमण एह, नियचित्ति अजिग्गह सुकयगेह । पोसह पारिसु सिरिवघमाण, पय नमिय पजाय समझ सुकाण ॥५१॥ दिषयरजग्गमणिहिं सुखवत्थ, पहरिय मेखिय नियसयणसत्थ । निग्गवई चंपापुरवरा, सिरिसंखसक जिम सुचना ॥ ५॥ घात-तिपयाहिसारीय सामिजुहारिय वारीय पासायण निळण । निसुण जिवाणीय श्रमीयसमाणीय आणीय मनि श्राएंदघण ॥५३॥ श्राजासिय सामीय कामदेव, तुह पासि श्रज संपत्त देव । तिषि ररकस रूव करी सपुष, करि खग्गधरी तरह जिन्नभिन्न ॥ ५४॥ तयएंतर हत्थिनुयंगमाण, वेनविय रूव महापमाण । तुह तेण उवद्दव नूरि किड, तळं गिरि जिम तिरकसरिहिं न विध॥५५॥ श्रश्र धीरत्तण धरेवि, तई पाखीय पोसहपमिम लेवि । श्रह समणासमणी सामि तत्य, आमंतिय जासश्श्य पसत्य ॥ ५६ ॥ गिहिवास वसंतह सावयाण, जर एरिस निच्चल धम्मकाण । सुत्तत्थसार संगहपरहिं, वेरग्गखग्गमणमुणिवरेहिं ॥ ५७॥ता संजमवयकत्रिहिं विसेसि, धीरत्तण धरिव विसमदेसि । इय सामिवाणि सुणि एगचित्त, सवे जति मुणिवर तहत्ति ॥ ५० ॥षात-जिगनायग वंदिय गुणजिनंदिय गोयमपमुह नमेवि
करे। पोसह संपूरिय हरिसंकृरिय कामदेव संपत्त घरे ॥ एए॥ अह काउसग्ग पमिमा करेश, सो पंचमास विहि अणु* सरे । बम्मास धर वर बंजचेरु, थिरचित्त करी जिम रहइ मेरु ॥६॥ सचित्त जिमश्न हु सत्तमास, श्रारंन कर नहु श्रध्मास ।न करावश्न ह पासितेम, नवमास कर इपिपरिहिं नेम ॥ ६१॥ तसु कति रमतं नदु जिमेर, दसमास
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