________________
उपदेश॥१४॥
-*- M
चंपिय पयतति मारिस निसंक, तुह पमिस्सइ मरणश्रवत्थ वंक ॥३७॥श्य जंपिय कंपियन दु तहेव, काह नविकी चुक्कठे कामदेव । तं जाणि नाणि नियसुंमदमि, उहालिय गयणिहिं तेण चंमि ॥३७॥ निवमंतज दंतूसतिहिं विध, पुण रोसिहि नियपयतिलिहिं दिछ। तिहिं दिख पुरक नारय सरिस्क, तहवि हुन हु खमिय धम्मपरक ॥३५॥ श्रह हत्यिरूव संहरिय तेण, किय सप्परूव देविहिं खणेण । घणक जालसामल कुमिलकाय, रोसारुण नयण जिस पिसाय ॥४०॥ दिनीविस एरिस अश्कराल, मिहंत फूकिहिं विसहकाल । तसु अग्ग श्रावीय जण एम, हिव बुट्टसि मुफ वसि पमिय केम ॥४१॥ अक्रावि अत्यसि किय काउसग्ग, इणि धम्मि नत्थि तुह मुरक सग्ग । त& म करिश्रजिग्गह नीम थालि, मई मसिय मरण पामिसि अकालि ॥॥श्य वार वार वागरिय तास, पुण चित्तह न गयउ धम्मवास। तल तरकणि उग्गनुयंग रीस, नरि श्रावीय वीट गीव सीस ॥४३॥ दसपिहिं करि मसिवा खग्ग अंग, पुण होइखगार न चित्तजंग । खोइ तसु हीय सुतिरक दाढ, इणिपरि तिणि वेयण सदिय गाढ ॥ध घात-बह उहि पउंजिय सुर मणरंजिय तसु निम्मलगुण सो मुणए । पयमीदुध तस्कणि जय जय रव जणि कामदेव सावय थुणए ॥४॥ जसु कन्नजुयलि कुंमल विसाल, अमिलाण कठि वरकुसुममाल । सिरिमउम रयण मणि जमिय चंग, श्रानरणिहिं जिगमिग करइ अंग ॥४६॥ अश्फारहार सिंगारसार, कयवार करई सुर वार वार । हरि हर चउराणण अमरवार, सुर१ गुरु तुह गुण नवि खई पार ॥॥ त धन्नपुन्न गुणरयणखाणि, जसु जंप जस नियमहुरवाणि । सुरवर सुरगणम- ॥१४॥ प्राविहिं निविच, ते कामदेव मई अजा दिछ॥४०॥ सहलन तुह जीविय मणुबजम्म, जिणि उजिय न हु जिपरायधम्म ।
286
अंग, पुण हो
-
A RROSTEOS
कुंकल विसाल, अमिशा सो मुणए । पयमीदुध तरकाण वेयण सहिय गाढ ॥
Jain Education in
FOE Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org