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________________ SAKASESॐ4 गण । अरुणाजविमाणिहिं सुकय पुन, सिरिकामदेव उप्पन्न धन ॥ ५॥ तिहिं सच हत्थ सुपसत्य देह, कंचणवन्नजख सुरकगेह । चत्तारि पखिय पालेवि थाउ, अल्डरगण सेविय सुहसहाठ ॥ ६॥श्रह दश पुडइ जिणिंद, पय पणमी नाव धरी अमंद । चविऊण कहिं गमिही त य, पहु पत्नण गोयम निसुणि सोय ॥ ॥ उवजिय खित्त महाविदेहि, उत्तमकुखि सावय इन गेहि। तिहिं पालीय संजम अप्पसस्क, पामेसइ सासय मुरकसुरक ॥ ७॥ सिरिवीरनाह मुहकमल रंगि, निसुणीय नाणाविह जुत्तिनंगि । सोहम्मि कहिय जह जंबुसामि, यश् सुय सत्तम अंगठामि | ए॥ तिपिपरि मई जंपिय खेसमित्त, नवसंधिबंध बंधुर चरित्त । अन्नाण दोसि जं इह नसुत्त, तं मिलाक्कम मह । निरुत्त ॥10॥श्य खेमिहिं जासिय धम्मिहि वासिय कामदेव सावय चरिय । जे नियमणि श्राण ते सुह माण सोमवयणि सिवसिरि वरीय ॥१॥ ॥इति श्रीकामदेवश्रावकसन्धिः ॥ श्रथ पुगंगेपरि निदर्शनं दयतेकायबा न पुगंग, कस्स वि नियतणुसुश्त्तगण । कम्मवसगस्स कस्स वि, विसेसळ साहुवग्गस्स ॥१॥ जो पुण कुण अयाणो, नाणताणोवनत्तसाहुस्स । सो सधुबेयकरो, जाय इह नंदवणिज व ॥२॥ चंपाए नयरीए, सुनंदना-स मेष वापि श्रासि । सो अत्तदेहचोरकत्तणेण अवगण सधं पि॥३॥ जो जं मग्गा साहू, तस्स तयं देश परमव-11 माए । सहलेसकाई, सो पुण मणर बाद ॥४॥श्रह अन्नया तदावणमुवागया जसपरिगया रिसियो । गिम्हा-11 288 *** उप०२५ * Jain Education Intan For Private & Personal use only Hinw.jainelibrary.org
SR No.600046
Book TitleUpdeshsaptatika
Original Sutra AuthorKshemrajmuni
Author
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages506
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size11 MB
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