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तो साहिय महिवश्णो तिजए विहु कत्थ खनए ररका । जइ एवं ता किं नियपुत्तं सोएसि श्रहह मुहा ॥ ५० ॥ सबेसि सत्ताणं मरणं साहारणं नणु मं जो। एएण समं न बलं नेव नखं चहए किं वि॥ एए॥ एगे उप्पडाती मरंति अन्ने लिई जवस्सेसा । वेस व विविहरूवा वि नम सब मितियखोयं ॥६॥ माहण मा इण अप्पं मुहा कहं रुयसि कुणसु अप्पहियं । तुमवि कहं कवलिङसि न हु इजायमखुसीहेण ॥६१॥ तो वामवेण बुश्यं अहमवि जाणामि एयमविगप्पं । परमंगरुहस्स हियं सहिचं पुरकं न सकेमि ॥ ६॥ जाउँ कुलस्कर्ट मे विणा सुएणऽजा रहासजापहो । दीयाणा| हसु वचव रखिऽहं देव देवेण ॥ ६३ ॥ मह माणुसस्स निरकं देसु सुन जीवणेण जपनाह । चकी जंपइ तं पर जो विप्प सुणेहि मह वत्तं ॥६५॥ न दुविहिणा सह पोरिसमसरिसमुझसइ कस्स वि जयम्मि । सकस्स चकिणो वा खंदस्स तहा मुकुंदस्स ॥६५॥ सत्थाई सुतिरकाईविन मंततंताई तह य जंताई । एयम्मि फुरंति अहो अदिदिन्नप्पहारम्मि ॥६६॥ सोगं हयपरलोग ता उनिय धरसु धारिमं चित्ते । पबजाए को निरवजाए जवसु सङो ॥६७ ॥ साहसु परखोयहियं गए मए वा विणच्न वा । को दरको परितप्प विनरई वा सवत्युम्मि ॥ ६॥ विप्पेणुत्तं नरवर सच्चमिणं किं करण सोएण । रुपएण अणुमएण व जत्थ न पमिसद्दई कोऽवि ॥ ६ए ॥ एवं जइ ता तुममवि मा राय करेला सुप्पमायपरो । सोगमसंजविकले संजाए विहिवसेष पहो ॥ ७० ॥ तो संजंतो राया पुनश् किं सोगकारणमिहत्यि । विप्पेगुत्तं तुह सकिसहस्सपुत्ता मिई पत्ता ॥७१ ॥ सवेऽविश्कवारं पारं कुणसु मा विसायस्स । श्य वजपहारोवममाइनिय कन्नककुयगिरं ॥ १२॥ सहसा विसन्नचित्तो पमि राया अतुलमुहाए । पीढाउ महीपीढे सेखाउँ गंमसेलु व ॥७३॥
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