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सूइ य पुत्तत्तणे समुप्पन्नो । श्रकुचियरूवधरो जाउं मायंगजाईए ॥ ८ ॥ श्रह मडुमासम्मि कयावि एस सह खुट्टएहिं रममाणो । जं वा तं वा जंपंतनुं य तेहिं गखे गहिरं ॥ ए ॥ नियमंगलार्ड बाहिं खित्तों तो सोऽवि चिंतए चित्ते । एएहिं कहं विहियं अहो अहो कम्मदोसेणं ॥ १० ॥ इत्यंतरम्मि एगो श्रही कुमाराण पासमलीयो । सो तेहिं खरकणेणं निवारिचं सविसदोसत्ता ॥ ११ ॥ जलसप्पो छह बीजं तरकणमेएहिं श्रागर्ज दिघो। जीवंतो सो मुक्को तो बलनामो विचिंतेई ॥ १२ ॥ सबेऽवि अप्पणो चिय दोसेहिं इम्मई इदं जीवो । न तु परसकहिं कयावि पावाई असुहसंघायं ॥ १३ ॥ तेहिं चिय जलसप्पो मुक्को जीवंत खु दिघोऽवि । इय नाउमदं दोसे कयावि न परस्स पयनिस्सं ॥ १४ ॥ इ३ परिजाविय समये समन्तं गहिय गुरुसगासम्मि । सो पालाइ निरव पवन धम्मगुणसी ॥ १५ ॥ श्रह विहतो पत्तो कासीए सो हु तिंडुगवणम्मि । तिंडुगजस्का से वियपाल सम्मं तवं तवइ ॥ १६ ॥ तत्यऽन्नया समेट अन्नो जस्को वणम्मि पाहुए । कह जो तुमं न दीससि तो तं पड़ तिंदुगो जाइ ॥ १७ ॥ साहुस्सेयस्साई कुणमाणो गमि जत्तिमणवरयं । तेणागमणस्साई न सहामव यासर्य मणयं ॥ १० ॥ मजवि उाणम्मि य वसन्ति मुषियो निरीया गुथियो । तेणुत्ते तत्थ गर्ज पमाइयो तेण ते दिघा ॥ १९ ॥ ते दोऽवि तस्स नत्तिं जपन्ति धम्माणुरायरंगिला । श्रह कोसखियनिवंगुञ्जवा समिया तहिं जद्द ॥ २० ॥ जरकच्चणं विदेर्ज तीए दिनो स काउसग्गठि । बखनामरिसी कसियो मलमलियो जीसपायारो ॥ २१ ॥ इसि तरुणत्तमपण रूवखावन्नपुन्नदेहाए । परसह परसह सहिया पञ्चरको रकसो किमयं ॥ २२ ॥ तो सा जस्केच सक्षेस तकयमुवहासमसहमाणेण । विहिया गहिलिया तह जह परिणीया मुशिवरेषं ॥ २३ ॥ एवं नचा
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