________________
विप्फुरत्थामा ॥ ८॥ अह अन्नया धणस्को धक्कतो श्रामएहिं बहुएहिं । वागरण निययतणुए पणए पयकमखजुयसम्मि
ए॥ किंचिवि जणेमि अहयं तुनाणं हियपयं जया कुणह । ते उखवंति ताया जं कहसि तयं वयं कुणिमो ॥१॥ अह श्राश्सइ स ताणं तणुयाणं सविणयाण निययाणं । तुम्हेहिं मज्ज मरणे संजाए दिबजोएण ॥११॥ निचलपिम्मपरेहिं वायबमहो मिहो सगेहम्मि । जताण जाणाण व न हु कां वयणमिह सवणे ॥ १३ ॥ जइ कहवि जिन्नजावो हविक तुम्हाण नेहविगमेण । न दु तहवि हासजणजे कायबो नणु मिहो कलहो ॥ १३ ॥ चचसुवि कोणेसु मए एयस्स | गिहस्स गुणनिहिनिही । वदृति य निहिया विहिया पवरकलसेहिं ॥१४॥ पुवाश्कमेणेए गहियवा अजणिरेडिं किमवि मुहे। संघेयवा एसा न दुमकाया मए विहिया ॥ १५॥ जणियं तहत्ति तेहिं धयो य निहणं तन गर्म सिही। मयकिरियमिमस्सेए काठ सुचिरं छिया सुहिया ॥ १६॥ पुत्ताइसंतईए वमविमविसमा विवहिलं खग्गा। निय-/ नियमिजाण कए कलिं पकुवन्ति महिला ॥ १७ ॥ अन्नोन्नमवि सपिम्मा सहोयरा जिन्नजावमावन्ना । नारीण कन्नजावा पावा पीई पणासंति ॥ १७ ॥ अह पढमो सिमिसुड आकरु श्रप्पणो निहिं जाव । ता तम्मने विधिय हयसे
जाइ अबेरं ॥ १५॥ बीवि नियनिहाणे पिरिकय अह खित्तमट्टियं कसिणं । संजाउँ कसिणमुहो नहसमयसमयमेहन्द H॥२०॥ तह ती नियनिहिणो मने पोराणलिहियवदियान । उबहा दाममरिसमसरिसमीसानखजलिन ॥२१॥
संजार्ड य चनत्यो निहिं निहालित्तु हरिसपमिहत्यो । मणिकंचणरयणुक्रबवन्नं पयमीकयसुपुन्नं ॥ १२॥ अह तिन्निवि | सोयरिया जरिया रोसेण एवमाहिंसु । तुझा सवे तणुया पिटणा पुण श्रम्ह कलसेसु ॥ १३ ॥ केसाई निस्कित्तं बहुय
265
RAS-X*****-**txts:
उप.२३
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org