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उपदेश
। सप्ततिका,
॥१३३ ॥
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स्सेयस्स पुण निहाणम्मि । खितं सुवन्नरयणं वनजया पयमिया बहुया ॥२४॥ किच्चा चउजागेहिं चचत्यकलसा मणिसुवमाई। गिहिस्सामो अम्हे केणवि रोसो न कायवो ॥२५॥ अह जावको पयंपइ एवं कह खप्नई सुवक्षाई । जं जस्स निहाणा निस्सरियं तं खु गिण्हेह ॥ २६॥ तुने पहीपजग्गा जंपिननिहियपि निविसेसेण । निहिसु सुवमा
यं मट्टियकसत्तमणुपत्तं ॥ २७॥ नाहं नियकुंजत्थं थत्थं कस्सावि नणु पश्चेमि । २ वयणमसहमाणा तिन्निवि ते सोयशरा मिखिलं ॥ २० ॥ कलह का खग्गा जुग्गा न हिउँवएसदाणस्स । सह जावमेण बहुणा सजाउणा सरखयरमणा |
ए ॥न टु कोऽवि जगम्यं तं जंज रंजन ताण चित्ताणि । नायरनराण मने बालो वुलो व तरुषो वा ॥३०॥ त चटरोऽवि मिलित्ता पत्ता रायंगणं रणिक्कमणा । श्रत्याउराण जम्हा जाया मायाऽविन दुताया ॥ ३१॥ जंपन्ति ४ कलहकारणमिह निधारं न कोऽवि काजमलं । मइसारप्पमुहाणं मंतीणविन हुपुर बुद्धी॥३॥थासी निवो सचिंतो
कहं कली एस जियवो मे । ताव सुवुद्धी पत्तो रायसनाए नि नमिजं ॥ ३३ ॥ दिन्नासको निविजो जंप कह सामि श्रका तुम्हाणं । दीस चिंतामरया वयणसिराहाणिसंजणणी॥ ३४॥ तत्तो वजार निवो साहु तए नायमेयमप्पगयं । सचिवाजिमुहं संपिष्ठरम्मि नूवे जण मंती॥३५॥ निहिकुंजाण चउन्हें चरियं खोयाण निम्मियचरियं । नियबुद्धीए नच्चा रहस्समह जंप सुबुद्धी ॥ ३६॥ निधारयामि अहमिणमाइस जया पडूमसन्नमणो । तो रन्ना श्राइक किमहो कहणिवामित्वाऽत्थे ॥३७॥ जो वालइ सुरही स श्रषो सजाणोऽवि सो चेव । जो उचाइ बुहत्तं सत्तं वसपम्मि संपत्तं ॥ ३० ॥ सो बहुउंविदुगरुड जस्स मई फुरति सुधाउं। निस्संकं व सए एसो नाउँ विहेयबो॥ ३ए ॥ श्य
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RAAT
॥१३३ ।।
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