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________________ KARNA%AKARAN खित्ता अहं करेमि पहो ॥१२॥ तुरएनकरहवसहे दासादासी अहं खु पोसेमि । रमा पुर्य बहहा धणेरिसो ते किखे-1 सजरो ॥ १३ ॥ जूमीवणा जणि निम्मखवेसं करेहि जो जद । किं रकवेसकरशेखपार्थ होणयं नेसि ॥१४॥ अक्रिय घमकोकी निम्मविय तहेव वसहजुयमसमं । श्रगणंतो ऽस्कन्नरं मजासि नश्पूरमम्मि ॥ १५॥ डोश्य बहुवस्वजरं राया सेपेसिट नियावासे । कालकमेण तेषवि निम्मविया वसहजुयलीवि ॥ १६॥ दवाण (ए) रूववेसो न कर्ड कश्यावि सयामम्मिान हुखको बहुमायो तेसोचियवेसमेव कुरु ॥१७॥ ॥इति सोपरि दृष्टान्तः॥ अब कुछा न अन्नस्सेति क्षितीयपदोपरि दृष्टान्तः कय्यते-कम्मिवि संनिवेसे एगोकुखपुत्त वस। सो पार्य परगेहपरिश्रमणसीखसहावत्तेष बत्तासु समुझसइ । जस्स तस्स घरे गोळि कुषतो विज्ञ। सयहिं वकिवि न गइ।हियं | कहियमवि न मन्ने । पाविच्छजणगोनिधित्तेणप्पाणमेव बहुमन्न। अन्नया कस्सवि घणस्स गेहा तकरण केणवि8 *पठणं पदमवहरियं । सो य तग्घरे गोरिसियत्तेष श्रावितो वहा य धषिएण वणिएण धणरिधी गया नाया। सोय तकरो दूरदेसं गई। वह तस्स कुखपुत्तयस्स उवरि चोरियसका सबेहिदि उप्पाश्या । सो पुखि-"श्रम्हाणं धणं गयं तुमं न जाणेसि, अन्नो न कोऽवि तुमा श्य घरे समेळ जणो अनायपरो" । एवमुत्ते धणड्डेण सो कहर"नाहं मुणामि, तुझे एव जापह" तळ सो रायपुरिसेहिं निग्गहिट । सयहिं उत्तं-"एसो श्रम्हहिं परवरप्पवेसाठे पमिसियो वासि, अम्हे किं करेमो"। त सो वराट बाहिं धिकरिवं राणा चोरसिस्. पावित्ति मुणित्ता परघर 263 Jain Education International For Private & Personal use only www.jainelibrary.org
SR No.600046
Book TitleUpdeshsaptatika
Original Sutra AuthorKshemrajmuni
Author
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages506
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size11 MB
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