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सप्ततिका.
॥१७॥
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[णिय पामि कुमरो । रुद्दयवसायवसा मरिनु पत्तो महानरयं ॥ १४॥ तत्तो मन्छेसु नमामिऊण बहुकालमावईदि निसं । मुरकीकर्ड कुबेरो कम्मपरीणामजूवालो ॥ १२५॥ जप्पास्यवं नयरे महापुरे तं धणसिस्सि । पलमाजिहाणपुत्तं संपन्नं रूवरेहाए ॥ १६ ॥ युग्मम् ॥ जाया सिसुत्तणेवि दु माया मायाश्गो मणोमले । तस्स बहुलित्तिनामेण नंदिणी रागकेसरिणो ॥ १२ ॥ तबस सिसुवग्गं वंच संच सुखाश्यं विविहं । खायऽ पियइ सयं सो नन्नेसिं दे खेसंपि ॥ १२ ॥ बोझ महुरे वयणे नयणे नीरेण जर मायाए । जइ वड्डयरो जा तो वंच मायरं पियरं ॥ १२॥ जोलवनइणिजत्तिकयाइ विनमइ नाउएवि निए । उलायमवि पढंतो धुत्तयविजाइ धुत्ते ॥१३०॥ जश् जाइ जणपिसत्थे जिणहरमेसो भईवमाश्यो। तो जिणथुई जणित्ता दिहिं वंचित्तु सबेसि ॥ १३१ ॥ परिकवर मोयगाई करकाए बहुलिया। सिरकाए । चोरइ य घंटकलसाइ हत्यपयलाहवुलोलो ॥ १३॥ तामिजंतोवि जिसं न मन्नई चोरियाश्वत्थूणि । सप्लावं न हुलास सहोयरस्सावि कस्सेसो ॥ १३३ ॥ अन्नजणं सयणं वा न हु मिल कंपि निल दली। अश्वेश्यचित्तेहिं माइपियरेहिं सो कश्या ॥ १३४ ॥ नी गुरूण तीरं जणियं तेसिं च तेहिं पुत्त जहा । जयवं श्रम्हाण कुले कम्मयरोवि हुन एरिस॥ १३५ ॥ जाउँ मायाबहुदो बहुलोनाकरिन रिजव सु । तो तह कुणह पसायं जह मुंचइ एस माश्त्त ॥ १३६॥ ततो गुरूहि करुणाइ देसणा कवमकूमनिवणी । विहिया हियासएहिं सएहिं कन्नहिं तेण सुया ॥ १३७॥ मायावी जवि जपो न दु श्रवराह करे कस्सावि । न दु विस्ससणिजो तह (विहु ) कस्सवि सप्पोब सो हव॥१३॥ मायाविषो जहा इह परजम्मे हीजाश्वंसेसु । उप्पङति निहीणा दीणा दारिदिया उहिया ॥ १३॥ तो कम्मपरि
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॥१२७।।
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