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________________ उप० २२ Jain Education Interns | निकास परमवेरिव ॥ १०८ ॥ ततो वखित्तु एसा श्रवच्चमोहेण वाजला संती । तस्स य विलगित पर सर गिहे आण कुमारं ॥ १०७ ॥ मया काहूयमेयमवगम्म सम्ममवणीसो । दावइ महंतमास मिमस्स श्रवि दुबिलीयस्स ॥ ११० ॥ तत्योवविध सोधियो न हु नमणमवि कयं पिणो । उढी कयनयणमुहो असंमुहो रायजण्यस्स ॥ १११ ॥ आना| सिर्ज तहावि हु बहुषा नेहेण व तुन सुहं । तुह सुंदे रिमगुएरं जिएहिं निवहें नियदूय ॥ ११२ ॥ पहिया कन्ना पाणिग्गहत्य| मञ्चत्थ मुश्य हियएहिं । तासं पूरेसु मणोहराई नियपाणिदाषेण ॥ ११३ ॥ युग्मम् ॥ तह लहु गहेसु र मए सयं किए या जिसे । परिजुत्तसुचिरनोगा वयमणुजामो य दिरकपदं ॥ ११४ ॥ तो विहियकक्षजावो स सेखराएण निविरुकय- | | पावो । जालयलरश्य जिनकी रायं पर जाई वयणमिणं ॥ ११५ ॥ इत्तिय महग्गहेपाहमिहाणी घरा जणीए । एां न किंचि कड रकमहं दिन्नमवरेण ॥ ११६ ॥ न हु गिहिस्सं इय निछ य सो वासरो खयं जाउ । साऽवि निसा पलयमई जत्थ पर दिन्नरऊसिरी ॥ ११७ ॥ युग्मम् ॥ श्य वुत्तुं परिहपहारदा श्रहणित्तु पीढग्गं । सहसा समुि सो गतो दारदेसेण ॥ ११० ॥ रन्ना सपरिगरे जव ( चि) रिकर्ड र रिकर्ड न मायम्मि । किमणेण निग्गुणेणं नंदणपासेण धरिए ॥ ११५ ॥ तह सभ्मदंसणं चत्तो संपत्त य मिछे । तह सेखरायमोहयनमिर्ज नगराज निस्सरिजं ॥ १२० ॥ बाहिं पत्तो य महाकवीए वियमाइ सावयसएहिं । राया मायाममयामुत्तो तत्तो य पब ॥ १२१ ॥ नियखदुयजाउ खो नीलयस्स दाऊण परमर सिरिं । श्रह सो कुबेरनामो परिभ्रमंतो महारन्ने ॥ १२२ ॥ संगामकालन घेण वग्घपल्ली वस्स तरण | चित्तेण पिरिक सो तर्ज स जलपोब पक्कलि ॥ १२३ ॥ त्रिनिर्विशेषकम् ॥ सहसा चविर्ज तम्मारणत्थमाद 253 For Private & Personal Use Only xxx w.jainelibrary.org
SR No.600046
Book TitleUpdeshsaptatika
Original Sutra AuthorKshemrajmuni
Author
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages506
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size11 MB
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