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________________ सप्ततिका उपदेश- लाखछजसपसरा ॥ ए॥धर्णिसु ता श्रमचा सच्चा एसा गिरा धुराधरणे । पइ साहसिकनवणे जवणे सइ नंदणे निळणे IPए३ ॥ सक्कोवि नेव सक्को श्राबाहं काउमाउविगमेवि । परमेवमसरिसुखावलाखसत्तं न ते जुत्तं ॥ ए४ ॥ नागमिस्स महयं माणधणो सपिउणोवि तीरम्मि । जो रायनंदणाणंदजपणजणमन्नयारम्मि ॥ एए॥ विषयगुणविप्पहीणा हीणा लासवे गुणा समरकाया । सहयारतरुविमुक्का वणराई रायए नेव ॥ ए६॥ उत्तमकुलुप्रवाणं विणयपहाणा गुणा थुणिति।। तत्परिहाणाण इमाण गोरवं नेव विप्फुरद ॥ ए७॥ तत्यवि श्रम्मापियरो विसेस गोरवारिदा जणिया। तुम्हारिसाण | कुलवंतयाण श्य नेव उचियं नो॥ ए॥ सो पमिजणि खग्गो अहिन्दि सेखरायनामेण । रे रे गबह गेहं बाद वियया तुम्हे ॥ एए॥ विनाणनाणजुत्तस्सवि मह 5 उड़ाया हु सिरकवणे । एवं सिकं अप्पह माउयपियराण गंतूणं ॥ १०॥ वुत्तं (तुं) ते सबे कंठे चित्तूण अमरिसेण त। निक्कासिया खणणं रायमुवागम्म साहंति ॥११॥ मातो पिठणा विलायं माणी मन्नंदणो जिसो एसो। रजामवजनिहाणं परिच्चइस किमेएण ॥ १०॥ जत्थ विविङति लाय जंतुषो मोहरायसिन्नेण । एवं ता मन श्रलं नोगेहिं दत्तसोगेहिं ॥ १०३ ॥ पडणीकिजा ता अजा रजासामग्गिया कुमारस्स । श्य चिंतियं न साहिय परमेयं कस्सवि नरस्स ॥ १०४॥श्रह श्रन्नदिणे रन्ना शाहू सो पहाणपुरिसेहिं । तेहि पणमित्तु वुत्तं पश्रणं अत्थि दु महंतं ॥ १०५ ॥ श्रागवह पिउपास खणमेगं मा विलंबमिह कुणह । तो सेलरा- यवस ते तह वहीलिया पुरिसा ॥ १०६ ॥ जह अविलरकवयणा नयणागोयरपहं गया तुरियं । तत्तो सामंता मंमखीयवग्गो य तह चेव ॥ १०७॥ धिक्करिय तेण वित्तासि य माया त तहिं पहिया। निम्नविय तमवि श्मो 252 A9-%ANCHISEX ॥१२६॥ CCC 5 Jain Education in For Private & Personal use only www.jainelibrary.org
SR No.600046
Book TitleUpdeshsaptatika
Original Sutra AuthorKshemrajmuni
Author
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages506
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size11 MB
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