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________________ Jain Education International सरिस्सो पुरिसो कोवित्थ साहसि ॥ ७६ ॥ जह जह निसुएइ नियनामवन्नणं कन्नसुरकसंजणणं । तह तह मन्नइ अ दप्पंधो मेरुगिरिगरुां ॥ 99 ॥ जह जह थुबंति गुणे श्रणेगबंदिबया मुहस्सुवरिं । तह तह देहे गेहे नहंगणे माइ न जएवि ॥ ७० ॥ इच्चा चामुवयणेहिं सम्ममुप्पासि कुबेररको । श्रश्सुकखयरकब नमएसीलो न कस्सावि ॥ ७ए ॥ जयललिसमेाग य तत्तो ईव मयमत्तो । पियराएं न हु मिलिट नियबाहुबले झलि ॥ ८० ॥ पत्तो नियआवासे वत्तामित्तं न साहियं पियो । का बत्ता न परियाजणस्स मिलियन्स सयमेव ॥ ८१ ॥ गुरुदेवेवि न वंद‍ निंदर नियसेवगाण मम्मि । बुढानि नाखवई सवई तद्दोसनिरंवं ॥ ८२ ॥ केवलमुल वेसालंकरणोदारफारसिंगारो । किविरग्गोवविध सो निया ॥ ८३ ॥ तंबोलफुल्लगलो मल्लोबातुलबादुगबिलो । लीलाइ गग्गयगिरं जासंतो वक्कदिडीए ॥ ८४ ॥ पासंतो परखोयं तां व मन्ने तियां सयलं । नमविरूपेमयगुडी र सिर्ज जा वसई नियाये ॥ ८५ ॥ कश्यावि धणंजय नरवरेण सिरकं पदाय नियसचिवा । पछविया पुत्तंतियमिमेहिं श्रगम्म संखत्तं ॥ ८६ ॥ श्राइस कुमर निसुसु राया पायावदारणत्थं ते । उक्कंठिया हु अम्हे बाढं तुन्जाए मिलकए || 09 ॥ श्रागतबमवस्सं पस्संताणं घणं व तुह मग्गं । श्रम्हाण गिहे एवं तबकमिमो निसामित्ता ॥ ८० ॥ मोमियनियघाग्गो सावन्नमन्नसंग चवइ । किं तत्थागमणं पयणं मन जो जगह ॥ ८९ ॥ केणावि कुवियमा अरिणा करुणाविवजियमणेण । किं श्र पामि संकमम्मि जड़ पुए इमं सच्चं ॥ ९० ॥ ता कहह बहु जहाहं बंधित सुरिंदमवि समप्येमि । श्रागन्छामो न वयं कस्सवि पासम्मि को जल ॥ ९१ ॥ जइ अम्देहिं क सयमागलाइ कहं न ता ता । श्रम्हे न तदायत्ता जर्ज जए 251 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600046
Book TitleUpdeshsaptatika
Original Sutra AuthorKshemrajmuni
Author
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages506
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size11 MB
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