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________________ दिईए अणुकृखत्तेण मंदजावत्तं । पत्ता बहुला माया सीणं मीणंव मित्तं ॥ १४०॥ पयमीहूथं सम्मत्तमुत्तमं तदणुसेवMणुअत्तो । जाउं जा चिरकालं तो पिटणा अप्पणो पासे ॥ १४१॥ सो सोवलियहहे उवि विस्सासमुवगएण सयं । धणकोत्पलियं दाउं जोत्तुं पत्तो गिहं सिनी॥१४॥इत्तो तप्पुरपहुणो वाहं मग्गम्मि वाहयंतस्स । हत्थंगुली मुद्दा रयणं गलियं महीवखए ॥ १४ ॥ केणावि तमुवलाई पउमस्स समप्पियं समाणित्ता। विनायमणेणेथ नरवश्सकं नवे * नूणं ॥ १४॥ तत्तो सहित्तु समयं स सन्नि बहुलियाइ मायाए । गिएह मुद्दारयणं विस्सारिय सुगुरुजणियाई H॥ १४ ॥ तो सिग्यमेव मिलादसणमोहारिबलमुन्नं से । सम्मईसणमणहं तक्काखमदंसणीनूयं ॥ १४६ ॥ थप्पं मुझं दाऊण अणग्यमिव गहिय गोवियमणेण । न हु दंसियमवि पिजणो समागयस्सावि विवणिम्मि ॥ १४॥ श्रह पमहसरवो रमा पकारि सयखनयरमनम्मि । जो संपयं पश्व सो निहोसोत्ति मोत्तबो ॥ १४० ॥ पन्छा लथे सोहे पाणेहि समं श्मो मम दाही । सयखपि पुरं जाय तो जयजीअं सुणित्ता ॥ १४ए ॥ तो पामिवेसियमुहाउ सिक्षिणा नायमे यवुत्तंतं । तो एगते पुछो पिठणा पउमो महामाई ॥१५० ॥ बहुखियबहुलेणिमिणा पिहित्तु कमाई नणियमेयस्स।। *अहह पसंतं पावं कोवि कुणइ कम्ममेरिसयं ॥ १५१ ॥ जणपीएवि तहेसो पयंपिठ कपिउ न मणयपि । सबेहिंपि हु पुणे जासइ नाहं वियाणामि ॥ १५॥ अनिविमनियमिवस नियसनावो न साहि तेण । मायावंताण नराण नझाए दानेव चरियजरो॥ १५३ ॥ अन्नदिणे रायको कोसागाराहिगारि मुई। पलमग्गहियं नालं संपेसपारदेसियगं ॥१५॥ नियसयणं ववहारियवेसे पेसए परमहट्टे। तेणेगते नशिजो निसुषसु कन्नवत्तमिर्ष ॥ १५५॥ सिंहखदेसप्पहुणा 255 +% CE% Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600046
Book TitleUpdeshsaptatika
Original Sutra AuthorKshemrajmuni
Author
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages506
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size11 MB
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