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________________ उपदेश सप्ततिका. तमणासोश्तु फुट एरिसर्वसुजवा नही जाया। अयं पुण सिन्सुिल एईए उवरि नेहियो ।। १३६ ॥ पुषजवन्नासाउं गंगणिडोऽवि चेव निवसंतो । नमपेमयम्मि हिरि अइह महाकम्मगरुश्चत्तं ॥ १३७ ॥ थेवोऽवि दोसखेसो घम्मे थश्यार य जो खग्गो। अपमिकतो सो होइ गरुश्चदुहखहरिखान; ॥ १३ ॥ जं जेण कयं कम्मं तमवस्समिमस्स एइ नणु उदयं । नुत्तम्मि जोयणम्मी उग्गारो पायमो हो ॥ १३ए॥ तबयणामयपाणा घणा जणा तरखण्णाउ पमिबुधा । किं जखहरवुडीए तुहिन दुखद वणराई॥ १० ॥ निवियनकम्मा धम्मारामं सयावि सिंचंता । श्राग्यमणुपूरित्ता चारोऽविदु नाणियो श्रह ते ॥ १४१॥ संपत्ता मुरकसुहं हं न जत्थस्थि खेसमित्तंपि । सिसा नाणसमिधा विहरंति सुहं सयाकाखं ॥१४॥ जे पुण बहुस्सुयत्तं खड़े माया गारवेणऽहवा । नाखोयंतश्यारे कह ते सिवसाहगा इंति ॥ १४३ ॥ जे पुण निस्सझमणा गुरूण पुर कहित्तु नियदोसे । ते श्राराहगनावं सहिऊण सिवं गमिस्संति ॥१४॥ जो वंसग्गे चमि सुहावि नमियाश् रागनमिऽवि । पमिले न बुग्गईए स श्वापुत्तो मुणी जय ॥ १४५॥ विसयविरत्तो हो मिठापहमुजिकचं पहे खग्गो । सो शबो निरवलो श्वासु वंदणिडो ॥१६॥ पवित्तमेयं परियं सुपित्ता, श्वासुयस्सुत्तमसंवरस्स । गयाश्यारं जिपरायधम्मं, कुणंतु पावंतु सिवस्स सम्मं ॥१४॥ ॥ इति श्खापुत्रचरित्रं संपूर्णम् ॥ 200 ॥१०॥ Jain Education in For Private & Personal use only K w .jainelibrary.org
SR No.600046
Book TitleUpdeshsaptatika
Original Sutra AuthorKshemrajmuni
Author
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages506
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size11 MB
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