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अह सोऽविपुहईसो पुरखोयं जाणि विरत्तमणं । एवं मणम्मि कायइ विकायग्गीव निप्पह ॥१२॥ रकमव खु इमं कोसक्षमतुझसमतुझं मे । जाई मई य हीणा हीणायारो जउ जाउं ॥१३॥ खोएहिं सस्किउँ तह सुखघखस्केहि मुकमजाउँ । मज्क विवेयवियारा घणुव वारण खलु नका ॥ १४॥ सवणोश्रही जलेहिं श्रग्गी य जहिंधणेहि य घणेहिं । अप्पा तहा न तुस्सा जुत्तेहिंवि जूरिजोएहिं ॥१५॥ जीए सेवारसि वसि नरपेयम्मि इन्सुर्छ । कुखमुछित्ता विमलं तीए पुण ही अहं खुशो ॥ १६ ॥ दीवे जहा पयंगो मज्के जाखस्स जह महामयरो। तह निवमिऽमि अयं नमी कजाम्मि जवकूवे ॥१७॥ श्य सोहपम्मि काणे वटुंतो जावलं जश्व निवो। श्रारुहिय खवगसेणिं केवलखी सो वरि ॥१२॥ तेसिं नाणधराएं चलन्दमवि नियमवत्तिदेवेहिं । विहिया केवलिमहिमा समप्पिट साहुवेसो य ॥ १२ए। अहह अहो अबरियं पस्सह जं रागरोसदोसिक्षा । चउरोऽवि चउरमणों जाया वेरग्गरंगिहा ॥ १३०॥ सवेऽवि पणमिया ते सुरेहिं खयरेहिं नायरजणेहिं । कंचएपउमारूढा सोहंता रायइंसुव ॥ १३१ ॥ वह य श्वासुयनाणी माणी मणयपि नेव मणमज्के । श्रवरिययचरियं निययं कहिलं समाढत्तो ॥ १३१ ॥ पुवनवेऽहं समणो श्रासी वासी चंदणे तुझो । जनावि दु पवकासका जाया सुनिम्माया ॥ १३३ ॥ तं पिवंतस्स सया रागो मह माणसे समुन्नसिङ । तमणाखोश्य सम्म संपत्ते जीवियंतेऽवि ॥ १३ ॥ वेमाधियदेवत्वं पत्तो सा साहुणीवि खलु तचो । जाश्मउंम्मचमई संपन्ना सोयधम्मरया ॥ १३५॥
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