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________________ सप्ततिका. उपदेश॥ ६॥ % जइ एयं नमाहियं श्रहं विवाहित अप्पगं उहियं । सुहियं न करेमि अहो दहेमि तो देहमग्गीए॥३०॥ तो मित्तेहिं सनी नी गेहे सिसुब कोण । कहमवि पुरकेणेसो संचि गमइ दीहाई॥३१॥ तो जणएणाका इा एयरस निययतणुवस्स । चिंताउरुव दीस हीणमणो कहमयं विमणो ॥ ३॥ वक्कुत्तिजुत्ति तम्मणस्स जावं सुगूढमवि मुणिलं । विवायवयणसोहेहिं गरुअमोहेहिं मित्तुवरि ॥ ३३ ॥ तेहिं तस्स सरूवे कहिएऽवहिएण तो श्मो पिठणा । नववियं कह जवया पार, धम्मियविरुद्धं ॥ ३५॥ किमु इब्नकुलुप्पन्ना कन्ना खायन्नरूवगुणपुन्ना । न हु संति इत्थ लोए जे एस असग्गहो गहि ॥ ३५ ॥ श्रारुहिलं धवलहरं मड्डाए को पमेश खड्डाए । पिच्चा पीयूसरसं को पियई कंजियं कुहियं ।। ३६ ॥ जय संपाइ हत्थी को चव रासहम्मि ता चमि । जुत्ताजुत्तं जाणसु अहाणे मा धिरं धरसु ॥ ३७॥ तदसग्गहमाइनिय माया जाया य पुरकन्नरखिन्ना। अजीणा तप्पासं सुयमेवं नणिजमाढत्ता ॥ ३० ॥ रे वच्च सन्चमणा मयणाजरजावमागएणावि । न दु खजामायाहरं खु कम्मंवि कायबं ॥ ३५॥ नयएंसुवारिधाराजरेण हिययस्थलं खु सिंचंती। विखवखवा गिराए कई कलंक कुले देसि ॥४०॥ परणेसु कन्नयाणं सयं सयं अन्नमिन्जकुखनूयं । तं नणु कवड्डियाए कळे कोमि परिच्चयसि ॥४१॥ जाहिं सह हसियत्नासियखेसोवि दु दोसपोसमावद। असुश्त्थीवि तासिं विधी संबंधमहिलससि ॥४॥ १ लज्जामर्यादानाशकम् . 192 A4-10- 20%%% Miww.jainelibrary.org Jain Education in For Private & Personal Use Only
SR No.600046
Book TitleUpdeshsaptatika
Original Sutra AuthorKshemrajmuni
Author
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages506
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size11 MB
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