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________________ उपदेश ॥ ए२ ॥ Jain Education "रिचितो धाव चापुतो पत्तो अभंगवेरग्गं । परिवबाइ पडज कम्ममहासेखसिरवी ॥ ४४ ॥ नोऽवि कोऽवि धन्नो जइ. तस्सत्यंमि मिलइ दिरकत्थं । राया तस्स कुकुंबं पाखिस्स गरुश्रवलो ॥ ४५ ॥ राया व रायमंत्री सो सजीव श्रम मुरकत्थी ।” श्रइन्निय घोसायं पुरिससहस्सं मिलियमासु ॥ ४६ ॥ एएसिं पद्यामहूसवं कारवेश् नरनाहो । श्रह यावच्चापुत्तो समं सहस्सेण पव ॥ ४७ ॥ पहुपासम्म श्रहीया चलदसपुर्वी सुथेवकाले । किमगम्ममहो मेहाजुयाण गुरुनत्तिरत्ताण ॥ ४८ ॥ सो चेव सावग्गो तप्परिवारम्मिं गवि पट्टणा । संपावियसूरिपर्ट सो विहरइ भूमिवलयम्मि ॥ ४९ ॥ गरम पत्तो मे तन्नाहसेलगनरिंदं । सयपंचसचिवसहियं उवएसेहिं कुइ सङ्कं ॥ ५० ॥ धम्मं पयासमाणो नाणोवग पमयमाणो । तत्तो सूरी सोगंधियाइ नयरी संपत्तो ॥ ५१ ॥ हल्लुफ लर्ड लोर्ड सपोर्ट तप्पयाण नमणत्थं । नीहरइ नयरिमज्जा धवलमहा मेहमालुव ॥ ५२ ॥ कोहलि चलितं पिचित्ता सुदंसणो सिडी । मिठादिधीवि हु तं पणमइ लोया वित्तीय ॥ ५३ ॥ तो तसे परिसाए सरसाए मेहमदुरसगिराए । जवइसइ सूरिराजे धम्मं कहलाए हजयं ॥ ५४ ॥ जो जो जब सबायर बेह जइ सिवाणं । तो सुकयजण पडणं निजणं सेवेद श्राययणं ॥ ५५ ॥ पुणमुह सुसा साहुं निस्सीमसमदमगुणेहिं । जस्सेवाइ गुणोहा घाण सित्तवोच्च वर्धुति ॥ ५६ ॥ सामुवासण्या विषयाचत्तेहिं किए जेहिं । रयणत्तयमेएहिं निक साहींषयं धषियं ॥ ५१ ॥ 1824 For Private & Personal Use Only सप्ततिका. ॥ १ ॥ www.jainelibrary.org
SR No.600046
Book TitleUpdeshsaptatika
Original Sutra AuthorKshemrajmuni
Author
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages506
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size11 MB
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