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________________ एमाइ पमिउत्तरवयणेहिं मुणिय निच्चखं तणुयं । अणुमन्नइ दिककए थावच्चा कहवि ममा(ड्डा)ए ॥३०॥ सबंपि पुत्तवत्तं तत्तो सा कह विण्हुणो गंतुं । उत्ताई चामराई जाय दिरस्कामहिमकळे ॥३१॥ पुरिसुत्तमो पयंप सो धन्नो सुकयपुन्न तह य । तारुमेऽवि मणुन्ने एरिस निस्संगया जस्स ॥ ३॥ निच्च(चिंता होसु तुमं सेलिणि तच्चरणगहणमहिमाणं । अहमेव महामंबरपुवमउवं करिस्सामि ॥ ३३ ॥ तम्मंद(दि)रमि गंतुं जणदणो वागरइ इमं वक्कं । अणुहवसु व नोए पुरणुवसे (चरो) नणु चरित्तनरो ॥ ३४॥ पमिउत्तर हरि सो नोगा रोगाजरा सुपमिकूखा । तह निन्नरजयसंका कयावि न हुनाए मज्ज ॥३५॥ मह छत्तछायाए तुह वसंतस्स लो जयं कत्थ । न दु नश्दहजलमज्के दवग्गिदाहो दहश् देहं ॥ ३६॥ जर पुण नीऽसि तुम ता मह दंसेहि जयं तुरियं । जेण निवारिता तं निब्जयत्नावं तुम नेमि ॥३७॥ श्य हरिणा संलत्ते थावच्चापुत्त तमरकाश् । जश् एवं देव तया जरमरणजयाई वारेहि ॥३०॥ पन्छा सिन्चाइ अहं जोए विलसामि निन्न होउं । तो कह तस्स कन्हो न चक्कवट्टी य तित्थयरा ॥ ३ए॥ जरमरणा जयाई जेलं सक्का ज श्महि जयं । सयलंपि दु विनमिलाइ तं को वारेश् वीरोऽवि॥४०॥ सर्व कम्माहीएं सुहासुहं तह जरा य मच्चू य । तो उझवश् कुमारो सामिय कम्माइं चेवाहं ॥१॥ उम्मूखिस्सं मूला श्य निषयमस्स मुणिय सिरिकंतो। तुघ्मणो सुछ तुम सिज्कल तुह वंनियं एवं ॥४॥ श्य सुपसंसित्तु श्मं मंद(दिरमागच अप्पणो विएहू । सयखम्मि पुरे कारइ पमहेणुग्घोसणं गाढं ॥४३॥ 183 KAXSCROSAKS Jain Education International For Private & Personal use only www.jainelibrary.org
SR No.600046
Book TitleUpdeshsaptatika
Original Sutra AuthorKshemrajmuni
Author
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages506
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size11 MB
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