SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 196
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ SAE% E0 उपदेश सप्ततिका %20-% 20% C संसारासारत्तं परिजाविय जुवणजाणुनेमिगिरा । तत्तं चरित्तधम्म परिचिंतिय अत्तणो चित्ते ॥१६॥ संवेगरंगरसिउँ पहुमेसो विन्नवेइ विणएण । जयवमहं जवनी वयं गहिस्सं सुयरहस्सं ॥१७॥ मायरमापुष्ठित्ता तर्ज पहू जण वन्छ सुश्मं । एयम्मि धम्मको तुमए सऊण होय ॥१०॥ अपमा कायबो न इ दायबो कयावि अवयासो। विसयाण महाविससोयराण चिरसेवियाण अहो ॥१५॥ अंबमविलंबमेसो आगंतूणं जण विणयपुवं । दिवं सिवसुरककए सामिसगासे गहिस्सामि ॥२०॥ नयणंसुवारिधारापसरेणोरत्यलं सुसिंचंती। ससिणेहमणा जणणी तो वुल्लइ सबलवना ॥१॥ वच्छ (ब)लस्सवि दिखा उरकावहघोरकष्णुणा । सुहलालसस्स तुह तह अश्व खलु मुक्करा होही ॥२॥ कह में मुयसि सुनिछुरचित्तो हो हयासयापन्नं । घरमिव एगत्थं न मणं मह गई तुह विरहे ॥२३॥ रमणीया रमणी बत्तीसेमान सुदढपिम्मा । अहह कह चंदरहिया रयणी श्व जविस्संति ॥२४॥ पुर्व जं किंचि कयं सुकंयं तेणुत्तमा श्मे पत्ता । जोगा उबहजोगा अजंगुरुद्दामसोहग्गा ॥२५॥ हुँजसु इत्येव वि एए हत्यागए गुणोवेयं । थायरसु दाणधम्म सम्मं करुणं कुणसु जीवे ॥२६॥ वट्टि(हित्ता निववंसं पडा जुबाजरे अश्वते । साहिङ मुकमग्गं पबङ गहिय निरवडं ॥२७॥ तो तं पर सो जंप पश्कापं तुट्टए अणिञ्चमिणं । जुन्नदवरुब था किजा को तत्थ पमिबंधो ॥२०॥ जह चवखमंजखिजखं तहेव खलु जीवियवयमसारं । रोगा मुहसंजोगा बहवे तत्यंतरायजरा ॥१॥ 192 % AC www.jainelibrary.org For Private & Personal Use Only Jain Education international
SR No.600046
Book TitleUpdeshsaptatika
Original Sutra AuthorKshemrajmuni
Author
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages506
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy