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________________ SA X तत्थ पुरी बारवई वणमके सिंऽवारवारवई । धवखियघरवारवई वारवडूसारवारवई ॥३॥ विलसंतवाझवोहा सन्नागा सुरयणा सुतोया य । जिएदुसिरीइ समेया सविडुमा अपमिसगणका ॥४॥ सद्दीवुजोयमई अश्वनरपुरवगाहमनिला । जा सुहा जलहिवसुहातुक्षा अश्दीहबाहु(ह)सा ॥ ५॥ त्रिनिर्विशेषकम् र तत्यत्थि सत्यवाही साहीणधणोहरंजियजयोहा । थावच्चाश्यनामा पश्मरणे तस्सु जा ॥६॥ श्रकुस्सहसोयवसा तीए न सुयाजिहाणमिह ववियं । तो थावच्चापुत्तोत्ति विस्सुले अजणि जएमज्के ॥७॥ उबणजुषणसमए विवाहिान सो महाविईए । इब्नाणं कुमरी रूवसिरी हसियअमरी॥॥ सममेस ताहि विलसाजोगे पुन्नोवतन्नसंजोगे । न गयंपि मुण कालं जह देवो देवतोगम्मि ॥ए॥ तत्थन्नया समेत जियो दिणेसुब पावतिमिरहरो। सुरककरो जबजएंजोरुहवणसंझरासीए ॥१०॥ तच्चरणपणमणत्थं सयं हरी हरसि त चलिर्ट । अमेऽवि सेहिसेणावश्णो पुण तदणुवत्तीए ॥ ११॥ विहियंगचंगसिंगारसंगयं पुरजणं तले दई। पुबइ नियपमिहारं थावच्चापुत्त तत्तो॥१२॥ कत्थेस जाइ लो सपमो सबजे पहे मिखिन । सबत्यवि अरकलि सखिदारोरुनेवत्थो ॥ १३ ॥ सो साह नेमिजिणागमणं तन्नमणहेनमेसोऽवि । आरुहिय रहं तुरियं सपरियणो पत्थि कुमरो ॥१४॥ जत्तीय पहुं वंदिय आएंदियमाणसो सुण पहुणो । वाणिं बहुगुणखाणं महुरसुहासारणिसमाणिं ॥ १५॥ तहिं रजं करह निवो कन्हो गोरो गुणेहिं परमेसो । खाइयसंमत्तघरो जो बारसमो जिणो भावी ॥ १ ॥ प्रक्षिप्तोऽयम् . -- ---- 184 उप०१६ Jain Education Inter For Private & Personal use only ww.jainelibrary.org
SR No.600046
Book TitleUpdeshsaptatika
Original Sutra AuthorKshemrajmuni
Author
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages506
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size11 MB
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