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________________ सिही सुणित्तु तुछ कह त तुम्ह केरिसो जयवं । धम्मो किंमूखो तो जण गुरू विषयमूलुत्ति ॥ ५० ॥ विण बुहा नवे सो सुसाहुविण य सढविण य । श्राश्ने बारसवय बीयम्मि महत्वया पंच ॥ एए॥ तुम्ह सुदंसण धम्मो किंमूखो वारइ त सोऽवि । श्रम्ह पुण सोयमूर्ख तं सो(मो)स्कफलं त सिग्धं ॥ ६॥ तं पश् श्ररका गुरू जीवहिंसा तिबदोसेहिं । कह सुना नणु जीवो रत्तेण व रत्तरत्तपमो ॥६१॥ श्ममाइमिय सम्मं सिही पमिबोहमाग कत्ति । बारसवयाई गिएह दसणमूलाई पाखे ॥६५॥ तत्तो कमेण निसुयं सुएण लोयाण वयणमालाए। विप्पमिवन्नो अन्नो मह धम्मा सुदंसबर्ड ॥६३ ॥ तो तत्थ मऊ जुत्तं गमणं वमणं च साहुदिनीए । कारिय अणिवारियमह निव(य)धम्म निश्चलं देमि ॥ ६ ॥ एवं वीमंसित्ता सहस्सपरिवायगन्नि (सुन) सिग्धं । सोगंधियापुरीए आगल तावसावसहे ॥ ६५ ॥ जमाणि तत्य मोत्तुं परिहियरत्तंबरो ससीसेहिं । सहिं सुदंसणगिहं पविजे सुख रुख्मणो ॥६६॥ इंतमिणं स निररिकय नो अब्नु नो समुहबई। जो जत्तो सुविरत्तो न सो तदागमणरंगिलो ॥ ६॥ संचि तुसिणी णी न हु वंदणापमिवत्तिं । श्राजासि सुएणं तो तेण पुरभिएणेवं ॥ ६ ॥ जो जो सुदंसणा तुममितं मं दछुमिच्मणुयब । अन्नुतो नत्तिं कुणंत अज किं जायं ॥ ६ए॥ नो वंदसि नो पुलसि कस्सरिसविणयमूलधम्मर । जाउँऽसि त तेणं अन्नुत्तिा समुझवि ॥०॥ इंहो देवाणुप्पिय अरिज्नेमिस्स जगवळ सीसो। सिरिथावच्चापुत्तयनामो अणगारसीसमणी ॥१॥ 195 Jain Education For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600046
Book TitleUpdeshsaptatika
Original Sutra AuthorKshemrajmuni
Author
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages506
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size11 MB
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